________________
१७६
जैनतत्त्वादर्श
अनाथ जीव बैठा होवे, तो हाथ के स्पर्श से मर जावें, तब तो जीव हत्या का पाप लगे; इस वास्ते जो काम करना, सो यत्नपूर्वक करना । ४. ईर्यासमिति-जब चलने का काम पडे, तब अपनी आंखों से चार हाथ प्रमाण धरती देख कर चले । जो कोई नीचा देख कर चलता है, उस को इस लोक में भी कितनेक गुण प्राप्त हो जाते हैं । प्रथम तो पग को ठोकर नहीं लगती, दूसरे जिस के परिग्रह का त्याग न होवे, उस को गिरा पड़ा पैसा, रूपक, आदि मिल जावे, तीसरे लोक में यह भला मनुष्य है, किसी की बहू बेटी को देखता नहीं, ऐसा प्रसिद्ध हो जाता है, चौथे जीव की रक्षा करने से धर्म.. की प्राप्ति होती है । ५. दृष्टान्नपानग्रहण-जो अन्न, पानी 'साधु लेवे, सो प्रकाश वाली जगा से लेवे, अन्धकार वाली जगा से न लेवे; क्यों कि अंधकार वाली जगा में एक तो जीव दीख नहीं पड़ता, और दूसरे सांप विच्छु के काटने का डर रहता है । तथा गृहस्थ का कोई आभूषण प्रमुख जाता रहे तब उस के मन में शंका उत्पन्न हो जावे, कि क्या ज्ञाने अंधेरे में साधु ही ले गया होगा । तथा अंधेरे में, सुन्दर साधु को देख कर कदाचित् कोई उत्कट विकार वाली स्त्री लिपट जाये, अरु कदाचित् उस वक्त कोई दूसरा देखता होवे, तो धर्म की बड़ी निंदा होवे । तथा साधु का ही मन अन्धेरे में स्त्री को देख कर बिगड़ जावे, साधु स्त्री को पकड़ लेवे, स्त्री पुकार कर देवे, तब धर्म की बड़ी हानि होवे,