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(ठ) के सिद्धांत साधारण जनता की दृष्टि से प्रायः ओझल हो रहे थे। उन के विषय में तरह २ की भ्रांत कल्पनायें स्थान प्राप्त कर रही थीं, तथा उस के सिद्धांतों के विरुद्ध भी बडे जोर का प्रचार हो रहा था । ऐसी अवस्था में जैनधर्म के सिद्धांतों का स्थायीरूप में यथार्थ ज्ञान कराने और उस के विरोधी विचारों का युक्ति युक्त प्रतिवाद करने की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए स्वर्गीय आचार्य श्री ने प्रस्तुत ग्रंथ का निर्माण किया है। हमारे विचार में यह ग्रन्थ जैन जैनेतर सभी के लिये बड़े काम की वस्तु है ।
तत्कालीन परिस्थितिजिस परिस्थिति में प्रस्तुत ग्रंथ का निर्माण किया गया है, वह वर्तमान परिस्थिति से बिल्कुल भिन्न थी । आज ग्रन्थों का प्राप्त होना जितना सुलभ है, उतना उस समय न था। ग्रंथों की रचना प्रणालि और सम्पादन कला में जितना विकास आज हो रहा है । और अनेकानेक दुर्लभ ग्रन्थों के विशद विवेचन जिस ढंग के आज उपलब्ध होते हैं, उस समय तो इन का प्रायः अभाव सा ही था । इस पर भी प्रस्तुत ग्रन्थ में उपलब्ध होने वाले अनेकानेक दुष्प्राप्य ग्रंथों के पाठों के महान संग्रह को देखते हुए तो चकित होना पड़ता है, और ग्रन्थप्रणेता की प्रतिभा के प्रकर्ष की बलात् मुक्तकण्ठ से प्रशंसा किये विना,रहा नहीं जाता।
हमारी विनय सम्पादनभारगुजरात देश की बडौदा राजधानी में मनाई जाने वाली स्वर्गीय गुरु देव की जन्मशताब्दि के उपलक्ष में पंजाब की