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________________ [ ६० ] 'भिन्न २ हैं इन चारोंके मिलनेसे, समूहको द्रव्य कहते हैं, किन्तु अनन्तशक्तियोंके अभिन्नभावको देश कहते हैं, 'देशांश और गुणांश इनही देश और गुणोंकी अवस्था विशेष हैं । अनन्तशक्तियों में से प्रत्येक शक्ति, देशके समस्त भागमें व्यापक है । इसलिये इसका खुलासा यह है कि, अभिन्नभावकोलिये अनन्तशक्तियोंकी त्रिकालवर्ती अवस्थाओंके समूहको द्रव्य कहते हैं इससे “गुणसमुदायो द्रव्यं" ऐसा जो पूर्वाचार्योंने लक्षण किया है वह सिद्ध होता है । इसप्रकार गुण और गुणीमें अभिन्नभाव है इसका निर्देश " द्रव्येगुणाः सन्ति " अर्थात् द्रव्यमें गुण हैं इसप्रकार आधेयआधार सम्बन्धरूपभी होता है तथा " गुणवद्रव्यं" अर्थात् द्रव्यगुणवाला है इसप्रकार खखामिसम्बन्धरूपभी होता है। लौकिकमें आधेयआधार और स्वस्वामिसम्बन्ध भिन्न पदार्थोंभी होते हैं और अभिन्न पदार्थोंमेंभी होते हैं । जैसे दीवार में चित्र, तथा घड़े में दही, यहां भिन्नपदार्थोंका आधेयआधारसम्बन्ध है । तथा धनवान् पुरुष यहां भिन्नपदार्थों में स्वस्वामिसम्बन्ध है, इसही प्रकार वृक्षमें शाखा आदि हैं यहां अभिन्नपदार्थोंमें आधेय आधारसम्बन्ध हैं तथा वृक्षाखावान् है यहां अभिन्नपदार्थों में स्वस्वामिसम्बन्ध है, सो द्रव्य और गुणके विषयमें अभिन्न आधेयआधार तथा अभिन्नही स्वस्वामिसम्बन्ध समझना । ( शंका ) जंव गुणों का समुदाय है . सोही द्रव्य है गुणोंसे भिन्न द्रव्य कोई पदार्थ नहीं हैं, तो यह द्रव्यकी जो कल्पना है सो व्यर्थही है । ( समाधान ) ऐसा कहना ठीक नहीं है क्योंकि, यद्यपि पट, तन्तुओंकाही समूह है, तन्तुओं से भिन्न पट कोई पदार्थ नहीं है परन्तु जो शीतनिवारणादि अर्थक्रिया ( प्रयोजनभूतकार्य ) पटसे होसक्ती है सो तन्तुओंसे कदापि नहीं होसक्ती । - इसलिये समुदायसमुदायी कथंचित् भिन्न हैं कथंचित् अभिन्न हैं ।
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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