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________________ [५५] उस देश जो अंशकल्पना नहीं मानांग तो द्रव्यमें छोटापन, बड़ापन, वामपन अनेक प्रदशीपन), और अकायपन ( एकप्रदेशीपन ) को लिदि नहीं हामी । (शंका ) जो ऐसा है तो एक द्रव्यमें अनेक अंशकल्पना न करके प्रत्यया अंदशकाही परमाणुकी तरह द्रव्य क्यो नही मानते ! क्योंकि, उस अंशमेभी द्रव्यका लक्षण मौजूद है। समाधान मा ठीक नहीं है क्योंकि, खंडस्वरूप एक देशवस्तुमें और अन्यम्प अनेक दशवस्तु प्रत्यक्षमें पारिणामिक बड़ाभारी मंटो क्योगि. जो यम्नु बण्डम्प एक देश माना जायगा तो उसवस्तुमें गुणका परिणमन एकाही देश में होगा, परन्तु यह बात प्रत्यक्ष बाधित वनका एक भागको हिलानस सब वेंत हिलना है, अथवा गरी एकादशी स्पर्श होनेने उसकता बोध सर्वत्र होता है, इसलिय मण्डेकदाम्पयन्तु नहीं है, किन्तु अखण्डितानकदेशमप है । तथापि पुगतारना और कालाण ये खण्डवंदशमपत्रस्तुभी हैं, यही प्रदश, विशेष गुण, करसहित व्यसंज्ञक है और उन विशपीको गुण कहते है दिदा उन गुणोंका आत्मा (जीवभूत ) है, उन गुणोंकी सत्ता देदान किन्न नहीं है और न देश और विशयम आधय आधार सम्बन्ध है किन्तु उन विद्यापीमही देश बना है। जैसे तन्तु शुकादिक गुणांका दागर है तन्तुम और शुनादि गुणाम आधार आंधय सम्बन्ध नहीं हैं किन्तु गुहादिक गुणानही नन्तु वैसा ( नन्तु ) है । (शंका ) निसप्रकार गुम्प भिन्न है और दण्डभिन्न है दण्ड और पुरुपके योगसे पुरुषको दण्ड। कहत है, उसही प्रकार देश भिन्न है गुण भिन्न है उस देशको गुणकं संयोगले द्रव्य कहें तो क्या हानि है ? ( समाधान ) ना ठीक नहीं है क्योंकि, ऐसा माननम सर्वसंकर दोप आता है चतनागुणका अंचतन पदाथीस संयोगका प्रसंग आवंगा । ( इसका
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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