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________________ निवेदन | EXEC30 यद्यपि यह 'जैन सिद्धान्तदर्पण' नामक ग्रन्थ पहले जब कि मैं जैनमित्रका सम्पादन करता था, प्रत्येक अंकमें क्रमशः छपता रहा है, उससमय जहाँतक बन सका और जितना जो कुछ भी 'जैनमित्र' में निकल सका, उतनेही अंशका नाम 'जैनसिद्धान्तदर्पण - पूर्वार्द्ध' नाम रखकर जैनमित्र कार्यालयके द्वारा पुस्तकाकारमें प्रकाशित हो चुका था, परन्तु अबतक वह अधूरा ही था, उसमें कितने ही पदार्थोंका विवेचन करना बाकी रह गया था, और कुछ न्यूनाधिकता करने की भी आवश्यकता थी, परन्तु उन पुस्तकोंके विकजानेके कारण जैनभित्रकार्यालयने मुझे पत्रद्वारा प्रेरित किया, और लिखा कि 'जैन सिद्धान्तदर्पणके द्वितीय संस्कणकी (दूसरे बार ) छपनेकी अत्यन्त आवश्यकता है, इसलिये आप इसमें हीनाधिकंता करके और जिन बातोंकी इसमें त्रुटि रह गई, उनको पूर्ण करके इसको शीघ्र ही भेज दीजियेगा ' इसलिये अब इसमें आकाश द्रव्यके निरूपणमें सृष्टिकर्तृत्वमीमांसा और भूगोलकी मीमांसा की गई है, और कालद्रव्यका विशेष रूपसे वर्णन किया गया है, तथा और भी जहाँ कहीं हीनाधिकता करनी थी, सो भी कर दी गई है, अब भी जो कुछ इसमें त्रुटि रह गई हो, उसके लिये मैं क्षमाप्राथी हूँ, इस संस्करण में मुझको मेरे प्रियशिष्य महरौनी (झाँसी) निवासी पंडित वंशीधरने बहुत कुछ सहायता दी है जिसका मुझे अत्यन्त हर्ष है । विनीत -गोपालदास |
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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