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प्रकाशकीय निवेदन |
इस आवृत्ति में दो विशेषताएँ हैं । पहिली यह कि पंडितजीका जीवनचरितं जोड़ दिया गया है। जिसे कि जैनहितैषी १३ वें वर्षके चौथे अंकमें उसके सम्पादक श्रीनाथूराम प्रेमीने लिखाथा । दूसरी यह कि पंडितजी इस भागमें जो कुछ बढ़ाना चाहते थे, वह यथा स्थान मिला दिया गया है । पंडितजीके हाथकी संशोधित कापी हमें जैनमित्र कार्यालयसे मिली और इस ग्रंथको छापनेकी आज्ञा दी, उनकी इस उदारता के लिये हम धन्यवाद देते हैं।
भवदीय - राजमल बड़जात्या, मंत्री ।