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________________ [४६] एक वस्तुकी जो स्वरूपसत्ता है वही दूसरीवस्तुकी स्वरूपसत्ता • नहीं है. इसकारण अवान्तरसत्ताको " अनेका." कहते है। ___वस्तु न तो सर्वथा नित्य है और न सर्वथा क्षणिक है जो वस्तुको सर्वथा नित्य मानिये तो प्रत्यक्षसे वस्तु विकारसहित दीखती है. इसकारण सर्वथा नित्य नहीं मान सकते और जो वस्तुको सर्वथा क्षणिक मानिये तो प्रत्यभिज्ञान ( यह पदार्थ वही है जो पहिले था) के अभावका प्रसंग आवेगा इसकारण प्रत्यभिज्ञानको कारणभूत किसी • स्वरूपकरके ध्रौव्यको अवलम्बन करनेवाली और. क्रमप्रवृत्त किसी • स्वरूपकरके उपजती और किसी वरूपकरके विनसती एकही काल तीन अवस्थाओंको धारण करनेवाली वस्तुको सत् कहते हैं अतएव महासत्ताकोभी "उत्पादव्यध्रौव्यात्मिका" समझना। क्योंकि, भाव ( सत् ) और भाववान् (द्रव्य ) में कदाचित् अभेद है वस्तु जिस स्वरूपसे उत्पन्न होती है उसस्वरूपसे उसका व्यय और ध्रौव्य नहीं है जिसस्वरूपसे वस्तुका व्यय है उसस्वरूपसे उत्पाद और ध्रौव्य • नहीं हैं जिसखरूपसे ध्रौव्य है उसखरूपसे उत्पाद और व्यय नहीं है इसकारण अवान्तरसत्ता एक एक लक्षणस्वरूप नहीं है इसकारण उसे “ अत्रिलक्षणा" कहते है सोई कुन्दकुस्वामीने कहा है। गाथा-सत्ता सब्बपयत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया। - उप्पादवयधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एगा ॥१॥ ' अब उत्पादव्यय ध्रौव्यका विशेष स्वरूप लिखते है। : ' : उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, ये तीनों द्रव्यके . नहीं होते किन्तु पर्यायोंने होते हैं परन्तु पर्याय द्रव्यकाही खरूप है इस कारण द्रव्यको भी उत्पाद ध्ययः ध्रौव्यस्वरूप कहा है। परिणमन स्वरूप द्रव्यकी. नूतन अवस्थाको .. उत्पाद कहते हैं परन्तु यह उत्पादभी द्रव्यका स्वरूपही है इसकारण यहभी
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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