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________________ [ ३६ ] गाथा - जुत्तीसुजुत्तमग्गे जंचउभेषेण होइ खलु ठेवणं । कज्जे सदिणामादिसु तं णिक्खेवं हवे समए ॥ युक्ति करके सुयुक्तमार्ग होते हुए कार्यके वशतें नाम ' स्थापना द्रव्य और भावमें पदार्थके स्थापनको निक्षेप कहते हैं. भावार्थ - एक द्रव्यमें अनेक स्वभाव हैं. इसलिये अनेक स्वभावोंकी अपेक्षासे उसका विचारभी अनेक प्रकारसे होता है. अतएव उस द्रव्यके मुख्य चार भेद किये हैं. अर्थात् १ नामनिक्षेप, २ स्थापनानिक्षेप, ३ द्रव्यनिक्षेप, ४ भावनिक्षेप... १ जिस पदार्थ में जो गुण नहीं है उसको उस नामसे कहना नामनिक्षेप है. जैसे किसीने अपने लड़केका नाम हाथीसिंह रक्खा है, परन्तु उस लड़केमें हाथी और सिंहके गुण नहीं है. २ साकार अथवा निराकार पदार्थमें वह यह है इस प्रकार अवधान करके निवेश करना उसको स्थापनानिक्षेप कहते हैं.. जैसे पार्श्वनाथके प्रतिबिंबको पार्श्वनाथ कहना, अथवा पुष्पमें अर्हतक स्थापना करना, स्थापनानिक्षेपमें मूल पदार्थवत् सत्कार पुरस्कारकी प्रवृत्ति होती है, किन्तु नामनिक्षेपमें नहीं होती. जैसे किसीने अपने लड़केका नाम पार्श्वनाथ. रखलिया तो उस लड़केका : पार्श्वनाथवत् सत्कार पुरस्कार नहीं होता किन्तु प्रतिमामें होता है. गत ३. जो पदार्थ अनागतपरिणामकी, योग्यता रखनेवाला होता है उसको द्रव्यनिक्षेप कहते हैं. जैसे राजाका पुत्र आगामी कालमें : राजा होनेके योग्य है इस कारण राजपुत्रको राजाका द्रव्यनिक्षेप कहते हैं उस द्रव्यनिक्षेपके दो भेद हैं, एक आगमद्रव्यनिक्षेप और दूसरा नोआगमद्रव्यनिक्षेप | .. .
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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