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________________ [२५] '.. 'नयके मूलभेद दो हैं; एक निश्चयनय और दूसरा व्यवहाँरनय । इसही व्यवहारंनयका दूसरा नाम उपनय है। “निश्चयमिह - तार्थ व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थं " इस वचनसे : निश्चयका लक्षण भूतार्थ. और व्यवहारका लक्षण अभूतार्थ है । अर्थात् जो पदार्थ जैसा है, उसको वैसा ही कहना, यह निश्चयनयका विषय है। और एक पदार्थको परके निमित्तसे व्यवहारसाधनार्थ अन्यरूप कहना व्यवहारनयका विषय है । निश्चयनयके दो भेद हैं; एक द्रव्याथिक, और दूसरा पोयाथिक । द्रव्यार्थिक नयका लक्षण कार्तिकेयस्वामीने इस प्रकार कहा है:--- . . जो साहदि सामण्णं अविणाभूदं विसेसरूवेहि । णाणा जुत्तिवलादो दव्वत्थो सो णओं होदि ॥ ___ अर्थात् जो विशेष स्वरूपसे अविनाभावी सामान्य स्वरूपको नाना युक्तिके बलसे साधन करता है, उसको द्रव्यार्थिक नय कहते हैं । भावार्थ-द्रव्य नाम सामान्यका है, और वस्तुमें सामान्य और विशेष दो प्रकारके धर्म होते हैं । उनमेंसे विशेष स्वरूपोंको गौण करके जो सामान्यका मुख्यतासे ग्रहण करता है, सो व्यार्थिक नये है। और इससे विपरीत पर्यायार्थिकनय है । अर्थात् पर्याय नाम विशेषका है, सो. जो वस्तुके सामान्य स्वरूपको गौण करके विशेष -स्वरूपका . मुख्यतासे ग्रहण करता है, उसको पर्यायांर्थिक.. नय कहते हैं। :: .द्रव्यार्थिंक और पर्यायार्थिक इन दोनों नयोंके दो दो भेद हैं। अध्यात्मद्रव्यार्थिक, अध्यात्मपर्यायार्थिक, शास्त्रीयद्रव्यार्थिक
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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