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है । अनुमानवाधित उसे कहते हैं जिसके साध्यमें अनुमानसे वाधा आवे; जैसे " घास आदि कर्ताकी बनाई हुई हैं क्योंकि यह कार्य है.” परन्तु इस अनुमानसे बाधा आती है कि “ घास आदि कर्ताकी बनाई हुई नहीं हैं क्योंकि इनका वनानेवाला शरीरधारी नहीं है । जो जो शरीरधारीकी बनाई हुई नहीं हैं वे वे वस्तुएँ कर्ताकी बनाई हुई नहीं है, जैसे आकाश"। आगमबाधित उसे कहते हैं जिसके सांध्यमें आगम कहिये शास्त्रंसे बांधा आवै । जैसे “ पाप सुखकां देनेवाला है क्योंकि यह कर्म है जो जो कर्म होते हैं वे वे सुखके देनेवाले होते हैं। जैसे पुण्यकर्म." इसमें शास्त्रसे बाधा आती है क्योंकि शास्त्रमें पापको दुःखका देनेवालां लिखा है । खवचनबाधित उसको कहते हैं जिसके साध्यमें अपने वचनसे बाधा आवै । जैसे “ मेरी माता बंध्या है क्योंकि पुरुषका संयोग होनेपर भी उसके गर्भ नहीं रहता।" इसमें अपने वचनसे ही बाधा आती है। यदि तेरी माता बंध्या है तो तूं कहांसे पैदा हुआ है और पैदा हुआ है तो बंध्या कैसा ? इसलिये ऐसें हेत्वाभांसोंसे भिन्न समीचीन हेतुसे साध्यके ज्ञानको अनुमानप्रमाण कहते हैं ।
• आप्त-यथार्थ बोलनेवाले ( यथार्थ बोलनेवाले ऐसा कहनेसे ही वह सर्वज्ञवीतराग होना चाहिये कहा गया क्योंकि जो यदि आप्त सर्वज्ञ-सर्व पदार्थोका जाननेवाला न होगा तो वह कितने एक अंतीन्द्रियपदार्थोके न जाननेकी वजहसे विपरीत भी बोल सकता है और यदि वीतराग न होगा तो भी. राग, द्वेष, लोभादिकंकी वजहसे अन्यथा भी निरूपणं कर सकता है । इसलिये सर्वज्ञ वीतराग (यथार्थ बोलनेवाले ) के वचन व इशारे वगैरहसे उत्पन्न हुएं पदार्थके ज्ञानको