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________________ [२१४] भी मित्रका पुत्र है, इसलिये श्यामवर्ण होगा. परन्तु मित्रपुत्र यदि गौरवर्ण भी हो जाय तो उसमें कोई वाधक नहीं हैं. इस ही प्रकार यदि कार्य, कर्ताके विना भी होजाय तो उसमें वाधक कौन? ... प्रश्न १३---यदि कर्ताके बिना कार्य हो जायगा तो न्यायका यह वाक्य कि कारणके विना कार्य नहीं होता है, मिथ्या ठहरेगा। ___उ०-मिथ्या क्यों ठहरेगा? कार्य कारणके विना नहीं होता यह ठीक है परंतु यदि कोई दूसरा ही पदार्थ कारण. हुवा तो क्या. हर्ज है? इसमें क्या प्रमाण है कि वह कारण ईश्वर ही है। प्रश्न १४-प्रत्येक कार्यके वास्ते कोई बुद्धिमान निमित्त कारण. अवश्य होना चाहिये. बुद्धिमान पदार्थ जगतमें. या. तो जीव है या ईश्वर है परंतु किसी जीवकी ऐसी सामर्थ्य नहीं दीखती कि ऐसे लोकको बनावे. इसलिये लोकका बुद्धिमान. निमित्त कारण ईश्वर ही है। ___ उ०—यदि लोकरूपी कार्यका निमित्त कारण कोई जड़ पदार्थः ही हो तो क्या हानि है ? प्रश्न १५---जड पदार्थके निमित्त कारण होनेसे कार्यकी सुव्यवस्था नहीं होती. लोक एक सुव्यवस्थित कार्य है. इसलिये निमित्त. कारण बुद्धिमानका होना आवश्यक है। उ०—यह लोक सुव्यवस्थित ही नहीं है. क्योंकि पृथ्वी कहीं उंची है कहीं नीची है. सुवर्ण सुगंध रहित है. इक्षु फल रहित है.. चंदन पुष्प रहित है. विद्वान् निर्धन और अल्पायु होते हैं. यदि. ईश्वर इस लोकका कर्ता होता तो ऐसी दुर्व्यवस्था क्यों होती? यह.
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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