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________________ [१८२] किसीके पूंछ है। किसीके सींग है | कोई..गूंगे हैं। किसीके बहुत लम्बे कान हैं, जो ओढ़नेके काममें आते हैं। किसीके मुख, सिंह घोडा कुत्ता भैंसा वन्दर इत्यादिककें समान हैं। ये कुमनुष्य वृक्षोंके नांचे तथा पर्वतोंकी गुंफाओंमें वसते हैं, और वहांकी मीठी मिट्टी खाते हैं, ये कुभोगभूमिया तथा भौगभूमिया मरकर नियमसे देव.. गतिमेंही उपजते हैं । इसही मध्यलोकमें ज्योतिप्क देवोंका निवास है, इसलिये प्रसंगवश यहां संक्षेपसे ज्योतिपचक्रका वर्णन कियाः जाता है। ज्योतिष्क देवोंके सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारे इस प्रकार: पांच भेद हैं । चित्रा पृथ्वीसे ७९० योजन ऊपर तारे हैं। तारोंसे: दश योजन ऊपर सूर्य हैं । और सूर्योसे ८० योजन ऊपर चन्द्रमा हैं: । चन्द्रमाओंसे चार योजन ऊपर नक्षत्र हैं । नक्षत्रोंसे चार योजन ऊपर बुध हैं । वुधोंसे तीन योजन ऊपर शुक्र हैं । शुक्रसे. तीन योजन ऊपर गुरु हैं। गुरुसे तीन योजन ऊपर मंगल हैं । और मंगलसे तीन योजन ऊपर शनैश्चर हैं। बुधादिक पांच ग्रहों सिवाय तेरासी ग्रह और हैं, जिनमेंसे राहुके विमानका ध्वजादण्ड चन्द्रमाके विमानसे और केतुके विमानका ध्वजादण्ड सूर्यके विमानसे चार प्रमाणांगुल नीचे है | अवशेष इक्यासी ग्रहोंके रहनेकी नगरी: वुध और शनिके वीचमें है। इसका खुलासा इस प्रकार है कि देवगतिके चार भेदोंमेंसे ज्योतिष्क जातिके देव इन ज्योतिष्कः विमानोंमें निवास करते हैं । इस ज्योतिक पटलकी मोटाई ऊर्द्ध और अधोदिशामें ११० योजन है । और पूर्व और पश्चिम दिशा-. ऑमें लोकके अन्तमें घनोंदधि वातवलयपर्यंत है । तथा उत्तर और दक्षिण दिशामें एक राजू प्रमाण है । यहां इतना विशेष जाननाः
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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