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________________ [१५५] उत्पादनमें समर्थ नहीं हैं, किन्तु इन सब कारणोंकी एकत्रता ही दीपकरूप कार्यके उत्पादनमें समर्थ है । भावार्थ-कारणके दो भेद हैं, एक असमर्थ कारण और दूसरा समर्थ कारण । कार्यकी उत्पत्तिमें सहकारी अनेक पदार्थों से जुदा जुदा प्रत्येक पदार्थ असमर्थ कारण: है । जैसे दीपककी उत्पत्तिमें तेल वत्ती आदिक जुदे जुदे असमर्थ कारण है । प्रतिबन्धक (बाधक) का अभाव होनेपर सहकारी समस्त सामग्रीकी एकत्रताको समर्थकारण कहते हैं । जैसे दीपककी उत्पत्तिमें तेल बत्ती आदिक समस्त सामग्रीकी एकत्रता और प्रतिवन्धक पवनका अभाव समर्थ कारण है । तेल बत्ती आदिक समस्त सहकारी सामग्रीका सद्भाव होनेपर भी दीपकके प्रतिवन्धक पवनका जबतक निरोध नहीं होगा, तबतक दीपकरूप. कार्यकी उत्पत्ति नहीं हो सकती इसलिये कार्यकी उत्पत्तिमें प्रतिबन्धके अभावको भी कारणता है । यहांपर कहनेका अभिप्राय यह है कि, किसी एक कार्यकी उत्पत्ति किसी एक कारणसे ही नहीं होती है, किन्तु एक कार्यकी उत्पत्तिमें अनेक कारणोंकी. आवश्यकता होती है । गति और गतिपूर्वक स्थिति ये दो कार्य जीव और पुद्गल इन दो ही द्रव्योंमें होते हैं अन्यमें नहीं होते हैं । जीव और पुद्गलके गति और गतिपूर्वक स्थितिरूप कार्य अनेक कारणजन्य हैं । उनमें जीव और पुद्गल तो उपादानकारण हैं और धर्म और अधर्मद्रव्य निमित्तकारण हैं । वस जीव और पुद्गलके गति और गतिपूर्वक स्थितिरूप कार्यसे धर्म और अधर्मद्रव्यरूप निमित्तकारणका अनुमान होता है । यद्यपि मछली आदिककी गतिमें जलादिक और अश्वादिककी गतिपूर्वक स्थितिमें पृथ्वी आदिक निमित्तकारण हैं, तथापि पक्षियोंके गगनागमनादिक कार्योंमें निमित्तकारणका अभाव
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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