SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं पाते । विना जैनसिद्धान्तके रहस्यके जाने यह जीवोंका अनादि कालसे लगा हुआ अज्ञानांधकार दूर नहीं हो सकता है । यद्यपि जैनसिद्धान्तका रहस्य प्रगट करनेवाले बड़े बड़े श्रीकुंदकुंदाचार्य समान महाचार्य आदि महर्षियोंके बनाये हुए अव भी अनेक ग्रन्थ मौजूद हैं। परन्तु उनका असली ज्ञान प्राप्त करना असम्भव नहीं तो दुःसाध्य जरूर है। इसलिये जिस तरह सुचतुर लोग जहाँपर कि सूर्यका प्रकाश नहीं पहुँच सकता । वहाँपर भी बड़े बड़े चमकीले दर्पण आदिके पदार्थोके द्वारा रोशनी पहुँचाकर अपना काम चलाते हैं । उसही तरह उन जैनसिद्धान्तोंके पूर्ण प्रकाशको किसी तरह इन जीवोंके हृदय-मंदिरमें पहुँचानेके लिये जैनसिद्धान्तदर्पणकी अत्यन्त आवश्यकता है। शायद आपने ऐसे पहलदार दर्पण (शैरवीन) भी देखे होंगे। कि जिनके द्वारा उलट फेरकर देखनसे भिन्न भिन्न पदार्थाका प्रतिभास होता है । उसही तरह इस जैनसिद्धान्तदर्पणके भिन्न भिन्न अधिकारों द्वारा. आपको भिन्न भिन्न प्रकारके सिद्धान्तोंका ज्ञान होगा । मैंने यद्यपि अपनी बुद्धिके अनुसार यथासाध्य त्रुटि न रहनेका प्रयत्न किया है। किन्तु सम्भव है कि छमस्थ होनेके कारण अनेक त्रुटियाँ रह गई होंगी । इसलिये सज्जन महाशयोंसे प्रार्थना है कि मुझको मंदबुद्धि जानकर क्षमा करें। प्रकार के सान्तदपणन पदार्थोकी निवेदक- गोपालदास वरैया ।
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy