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________________ आधीन है । जैनसिद्धान्तके रहस्य जाने विना यह मोक्षके उपायोंको नहीं जान सकता है। किसी एक टापूमें बहुतसे जंगली आदमी रहा करते थे, जो कि इतने अज्ञान और भोलेभाले थे कि जरा सी भी अनोखी बातके होनेपर घबड़ा जाते थे, बिचारे दिनभर काम करते थे और सायंकाल होनेके पहले ही पहिल सो जाते थे, इसलिये अंधकारका नामभी नहीं जानते थे । एक दिन सर्वयासी सूर्यग्रहण पड़नेके कारण यहाँ दिनमेंभी चारों तरफ अंधकार व्याप्त हो गया, इसको देखकर वे लोग बहुत घबड़ाये और राजाके पास दौड़ते गए और चिल्लाने लगे । राजाने चिल्लाहटको सुनकर हाल दर्याफ्त करनेपर फौजको लेजानेका हुक्म दिया, फौज इधर उधर दौड़ने लगी । वह विचारी क्या करती? अंधकार दूर न हुआ और वे फिरभी राजाके पास पहुँचे । राजाने और भी फौज ले जानेकी आज्ञा दी, वह भी जंगलोंमें आई और इधर उधर तोपगोला छोड़ने लगी, उसी फोजमेंसे कितनेही घोड़ा दौड़ाने लगे, कितनेही तलवार फिराने लगे, गरज यह कि सब अपने अपने हाथ दिखाने लगे। दूसरी बार उनके जानेपर राजा जंगलोंमें आया और उसके धकेलनेका प्रयत्न करने लगा परन्तु कुछमी न हो सका। इतनेमें कोई दीपान्तरका मनुष्य वहाँ होकर निकला और इस आन्दोलनका कारण पूछा, पूछनेसे उसे सब हाल मालूम हो गया । और उसने सबको आश्वासन दिया और धैर्य बँधाया और कहा, कि ये सब अभी हम दूर किये देते हैं । सुनते ही लोग राजाके पास इस संतोषप्रद समाचारको सुनानेके लिये दौड़े गये । राजाने सुनकर उसके पास जानेका इरादा किया और शीघ्रही आ पहुँचा और उससे अंधकार हटानेकी प्रार्थना की । राजाकी प्रार्थनाको सुनकर उस दीपान्तरमें रहनेवाले मनुष्यने तैल बत्ती दीपक वगैरह लानेके लिये कहा, सब सामानके आजानेपर उसने अपने जेबमेंसे पड़ी हुई दियासलाईको निकालकर दीपक जला प्रकाश कर दिया। जिससे कि वहाँका अंधकार दूर होगया। ठीक इसही तरह समस्त संसारके प्राणी अज्ञानरूपी अंधकारसे व्याकुलित हुए इधर उधर दौड़ धूप मचाते हैं । परन्तु सच्चे सुखका रास्ता __ बी जै. सि. द.
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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