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________________ [ १३१ ] द्रव्यके मूल भेद दो हैं, एक जीव दूसरा अजीव । जो चेतनागुणविशिष्ट होय, उसको जीव कहते हैं । और जो चेतनागुणरहित अचेतन अर्थात् जड़ होय, उसको अजीब कहते हैं । यद्यपि पूर्वाचायने द्रव्यका विशेष निरूपण करते समय पहले जीवद्रव्यका वर्णन किया है और पीछे अजीवद्रव्यका वर्णन किया है, क्योंकि समस्त द्रव्योंमें जीव ही प्रधान है, परन्तु इस ग्रंथकी प्रारंभीय भूमिकामें हम ऐसी प्रतिज्ञा कर आये हैं कि, यह ग्रंथ ऐसे क्रमसे लिखा जायगा कि, जिसेसे वाचकवृन्द गुरुकी सहायता के बिना स्वतः समझ सकें । इसलिये यदि जीवद्रव्यका कथन पहले किया जाता, तो जीवके निवासस्थान लोकाकाश, तथा जीवकी अशुद्धताके कारणभूत पुद्गलद्रव्यका स्वरूप समझे बिना जीवद्रव्यका कथन अच्छी तरह समझमें नहीं आता । सिवाय इसके जीवद्रव्यके कथनमें बहुत कुछ वक्तव्य है और अजीवद्रव्यका कथन जीवद्रव्यकी अपेक्षा बहुत कम है । इसलिये पहले अजीवद्रव्यका कथन किया जाता है । उस अचेतनत्वलक्षणविशिष्ट अजीवके पांच भेद हैं । १ पुद्गल, २ धर्म, ३ अधर्म, ४ आकाश और ५ काल । इन पांचोंमें जीव मिलानेसे द्रव्यके छह भेद होते हैं । इन छहों द्रव्योंमेंसे जीव और पुद्गल क्रियासहित हैं और शेष चार द्रव्य क्रियारहित हैं । तथा जीव और पुद्गलके स्वभावपर्याय और विभावपर्याय दोनों होती हैं । और शेष चार द्रव्योंके केवल स्वभावपर्याय होती हैं, विभावपर्याय नहीं होती । जिनमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण ये चार गुण होंय, उनको पुद्गल कहते हैं । गतिपरिणत जीव और पुद्गलको जो गमन में सहकारी है उसको धर्मद्रव्य कहते हैं । जैसे जल मछली के गमनमें सहकारी है । गतिपूर्वक स्थितिपरिणत जीव और पुद्गलको जो
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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