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________________ [ ११९] विशेषका निरूपण करनेसे पहले अलौकिक गणितका संक्षेपसे वर्णन किया जाता है ।. अलौकिकगणितके मुख्य दो भेद हैं, एक संख्यामान और दूसरा उपमामान । संख्यामानके मूल तीन भेद हैं अर्थात् १ संख्यात, २ असंख्यात और ३ अनन्त । असंख्यातके तीन भेद हैं अर्थात् १ परीता संख्यात, २ युक्तासंख्यात और ३ असंख्यातासंख्यात । अनन्तके भी तीन भेद हैं अर्थात् १ परीतानन्त, २ युक्तानन्त और ३ अनन्तानन्त । संख्यातका एक भेद और असंख्यात और अनन्तके तीन तीन भेद, सब मिलकर संख्यामानके सांत भेद हुए । इन सातोंमेंसे प्रत्येकके जघन्य ( सबसे छोटा ), मध्यम ( बीचके ), उत्कृष्ट ( सबसे बड़ा ) की अपेक्षासे तीन तीन भेद हैं, इस प्रकार संख्यामानके २१ भेद हुए । एकमें एकका भाग देनेसे अथवा एकको एकसे गुणाकार करनेसे कुछ भी हानि वृद्धि नहीं होती है । इसलिये संख्याका प्रारंभ दोसे ग्रहण किया है । और एकको गणना शब्दका वाच्य माना है, इसलिये जघन्य संख्यातका प्रमाण दो है । तीन चार पांच इत्यादि एक कम उत्कृष्ट संख्यात पर्यन्त मध्यम संख्यातके भेद हैं । एक कम जघन्य परीतासंख्यातको उत्कृष्टसंख्यात कहते हैं । अब आगे जघन्य परीतासंख्यातका प्रमाण कितना है, सो लिखते हैं । अलौकिक गणितका स्वरूप लौकिकगणितसे कुछ विलक्षण है । लौकिंकगणितसे स्थूल और स्वल्पपदार्थों का परिमाण किया जाता है, किन्तु अलौकिकगणितसे सूक्ष्म और अनन्तपदार्थो की हीनाधिकतांका बोध कराया जाता है । हमारे बहुतसे संकीर्णहृदय भाई अलौकिक
SR No.010063
Book TitleJain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Baraiya
PublisherAnantkirti Digambar Jain Granthmala Samiti
Publication Year1928
Total Pages169
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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