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________________ गोम्मट - मूर्ति की प्रतिष्ठाकालीन कुण्डली का फल [ लेखक श्रीयुत पं० नेमिचन्द्र जैन, न्याय - ज्योतिष- तीर्थ ] 10 श्रीयुत गोविन्द पै के मतानुसार 'श्रवणबेलगोल' के गोम्मट स्वामी की मूर्ति की स्थापनातिथि १३ मार्च, सन् ९८१ है । बहुत कुछ संभव है कि यह तिथि ही मूर्ति की स्थापना - तिथि हो। क्योंकि भारतीय ज्योतिष के अनुसार 'बाहुबलि चरित्र' में गोम्मट - मूर्ति की स्थापना की जो तिथि, नक्षत्र, लग्न, संवत्सर आदि दिये गये हैं वे उस तिथि में अर्थात् १३ मार्च सन् ९८१ में ठीक घटित होते हैं । अत एव इस प्रस्तुत लेख में उसी तिथि और लग्न के अनुसार उस समय के ग्रह स्फुट करके लग्न कुण्डली तथा चन्द्रकुण्डली दी जाती हैं और उस लग्न कुण्डली का फल भी लिखा जाता है । उस समय का पञ्चांग-विवरण इस प्रकार है श्रीविक्रम सं० १०३८ शकाब्द १०३ चैत्रशुक्ल पंचमी रविवार घटी ५६, पल ५८, रोहिणी नाम नक्षत्र, २२ घटी, १५ पल, तदुपरांत प्रतिष्ठा के समय मृगशिर नक्षत्र २५ घंटी, ४८ पल, आयुष्मान् योग ३४ घटी, ४६ पल इसके बाद प्रतिष्ठा - समय मे सौभाग्य योग २१ घटी, ४९ पल । उस समय की लग्न स्पष्ट १० राशि, २६ अंश, ३९ कला और ५७ विकला रही होगी । उसकी षड्वर्ग-शुद्धि इस प्रकार है - १०।२६।३९।५७ लग्न स्पष्ट - इस लग्न में गृह शनि का हुआ और नवांश स्थिर लग्न अर्थात् वृश्चिक का आठवां है, इसका स्वामी मंगल है | अत एव मंगल का नवांश हुआ । द्रष्कारण तृतीय तुलराशि का हुआ जिसका स्वामी शुक्र है । त्रिंशांश विषम राशि कुम्भ में चतुर्थ बुध का हुआ और द्वादशांश ग्यारहवां धनराशि का हुआ जिसका स्वामी गुरु है । इसलिये यह षड्वर्ग बना (१) गृह - शनि, (२) होरा चन्द्र, (३) नवांश – मंगल, (४) त्रिशांश- बुध, (५) द्रष्कारण – शुक्र, (६) द्वादशांश गुरु का हुआ । अब इस बात का विचार करना चाहिये कि षड्वर्ग कैसा है और प्रतिष्ठा में इसका क्या फल है ? इस षड्वर्ग में चार शुभ ग्रह पदाधिकारी हैं और दो क्रूर ग्रह । परन्तु दोनों क्रूर ग्रह भी यहां नितान्त अशुभ नहीं कहे जा सकते हैं । क्योंकि शनि यहां पर उच्च राशि का है । अत एव यह सौम्य ग्रहों के ही समान फल देनेवाला है। इसलिये इस षड्वर्ग में सभी सौम्य ग्रह हैं, यह प्रतिष्ठा में शुभ है और लग्न भी बलवान् है; क्योंकि षड्वर्ग की शुद्धि का प्रयोजन केवल लग्न की सबलता अथवा निर्बलता देखने के लिये ही होता है, फलत यह मानना पड़ेगा कि यह लग्न बहुत ही बलिष्ठ है ।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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