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________________ २५२ भास्कर [ भाग ६ शान्तिनाथ शान्तिनाथ के विषय में १०६८ ई० के एक लेख से पता चलता है कि इनके पिता का नाम गोविन्दराज था । इनके गुरु का नाम वर्द्धमान व्रती था, जो मूलसंघ के और देशीयगण के थे । शान्तिनाथ पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वितीय के समय में बनवसेनाड प्रान्त के शासक रायदंड गोपाल लक्ष्म के मंत्री और सेनापति थे । १०६८ के उक्त लेख में उन्हे 'बनवसेनाड' राज्य का कोषाध्यक्ष और उसका उन्नायक कहा गया है। इसी लेख में उन्हें 'श्रेष्ठ जैनमत-रूपी कमल के लिए राजहंस' कहा गया है। शान्तिनाथ केवल सेनानायक ही नहीं, निपुण कवि भी थे । उक्त लेख में उन्हें जन्मजात और निपुण कवि कहा गया है। उन्हें 'सरस्वती - मुख - मुखर' की उपाधि मिली थी । जैनमत के लिए शान्तिनाथ ने जो कुछ किया है, वह चिरस्थायी है । कहा जाता है कि उनकी ही प्रेरणा से लक्ष्म ने पत्थर का एक जिनमन्दिर निर्मित कराया और उसने तथा उसके राजा सोमेश्वर द्वितीय ने भी उस मन्दिर को भारी जागीरें दीं। 'मल्लिकामोद शान्तिनाथ - बसदि' है। उस मन्दिर का नाम गंगराज होय्सल राजा विष्णुवर्द्धन बिट्टिगदेव के यहाँ गंगराज, बोप्प, पुणिष, बलदेव, मरियएए, भरत, एच और विष्णु—ये आठ जैन योद्धा थे । विष्णुवद्धन १२वीं शताब्दी मे हुआ था, अतः इन वीरों का समय निश्चित है । 1 गंगराज कौण्डिन्य गोत्र के द्विज थे। उनके पिता का नाम एच, एचियांग या बुद्धमित्र था और माता का पूचिकव्बे । उनके पितामह का नाम मार और पितामही का माकरणब्बे था । इन बातों का पता ११९८ और १११९ के शिलालेखों से लगता है। गंगराज माता - पिता की सब से छोटी संतान थे। उनकी स्त्री का नाम नागला देवी या लक्ष्मी और लड़के का नाम बोप्प या एच था । श्रवणबेलगोल के एक लेख से पता चलता है कि गंगराज के मातापिता कट्टर जैन थे । ११२० ई० के एक शिलालेख से पता चलता है कि गंगराज की माता ने इसी साल (११२० ई० मे) सल्लेखना की विधि से प्राण-त्याग किया। चामुण्डराय - बसदि के एक शिलालेख में गंगराज की प्रशंसा की गई है और उनकी उपाधियों का वर्णन किया गया है। इन्ही शिलालेखों से यह भी पता चलता है कि गंगराज ने अपने अतुल पराक्रम से होयसल राज्य का काफी विस्तार किया था । विष्णुवर्द्धन के समय मे होय्सल - राज्य की उन्नति और रक्षा के लिए सबसे आवश्यक और महत्त्वपूर्ण काम था तलकाड से चोलों को मार भगाना । विष्णुवर्द्धन ने यह काम
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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