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________________ भास्कर भाग ६ चामुण्डराय के समय में गङ्गराज मारसिह पर 'नोलंवों' ने चढ़ाई की; लेकिन 'गोनूर' के मैदान मे चामुण्डराय ने उनकी सेना को छिन्नभिन्न कर दिया। 'चामुण्डराय-पुराण' से पता चलता है कि इस वीरता के लिए चामुण्डराय 'वीरमार्तण्ड' की उपाधि से विभूपित किये गये। ब्रह्मदेव के स्तम्भलेख से मालूम होता है कि इस विजय के अवसर पर स्वयं मारसिह ने 'नोलंबकुलान्तक' की उपाधि धारण की थी। दूसरा संकट पश्चिमी चालुक्यों की ओर से था। मारसिंह के ही समय में पश्चिमी चालुक्यों ने उपद्रव मचाना आरम्भ किया था। मारसिह के पुत्र राचमल्ल के समय में चामुण्डराय ने राजादित्य को परास्त कर यह विपत्ति दूर की। कहा जाता है कि 'उच्चंगि' के दुजेय किले में राजादित्य ने आश्रय लिया था। इस दुर्ग को जीतना एक प्रकार से असम्भव ही माना जाता था। कुछ समय पहले 'काडुवेदी ने इस किले का घेरा डाला था, पर बहुत दिनों तक घेरा डालने पर भी वह इसे वश में नहीं ला सका था। लेकिन चामुण्डराय के आगे इस दुर्ग की दुर्जयता न रह सकी। ब्रह्मदेव-स्तम्भ के लेख से (जो ९७४ ई० का है, और जो श्रवणबेलगोल मे पाया गया था) पता चलता है कि चामुण्डराय ने इस किले को विध्वस्त कर संसार को आश्चर्य्य में डाल दिया। स्वयं चामुण्डराय की कृति, 'चामुण्डरायपुराण' से भी इस बात की पुष्टि होती है। वह लिखते हैं कि 'उच्चंगि' के किले को वीरतापूर्वक हस्तगत करने के कारण उन्हे 'रणरंगसिंग' की उपाधि मिली थी। त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ के लेख से मालूम होता है कि 'रणसिंग' राजादित्य की उपाधि थी। इस प्रकार चामुण्डराय ने शत्रु को परास्त कर उसकी उपाधि धारण की थी। स्वयं राचमल्ल ने इस विजयोपलक्ष मे 'जगदेकवीर' की उपाधि ग्रहण की थी। तीसरी घटना, जिसकी वजह से चामुण्डराय ने 'समर-धुरंधर' की उपाधि पाई, . का युद्ध है। इस युद्ध में उन्होंने वजवलदेव (वजल) को परास्त किया था। इसका पता 'चामुण्डराय-पुराण' मे मिलता है। त्यागद ब्रह्मदेव-स्तम्भ-लेख मे भी इसका उल्लेख है। उपपुराण के अनुसार चामुण्डराय ने 'बागयूर' दुर्ग के त्रिभुवनवीर' नामक एक सरदार को मारकर 'वैरिकुलकालदण्ड' की उपाधि पाई। इसके बाद राज, बास, सिवर कुणांक आदि सरदारो को 'काम' नामक राजा के दुर्ग में मारकर भुजविक्रम' की उपाधि प्रा की। मदुराचय ने, जो 'चलदंक गंग' और 'गंगरभट के नाम से भी प्रसिद्ध है। के छोटे भाई, नागवमों को मार डाला था। चामण्डराय ने उसे मारकर मार वदला चुकाया। त्यागद ब्रह्मदेव-स्तम्भ-लेख से मालूम होता है कि चलदकान"" सिंहासन पर अधिकार जमाना चाहा था। चामुण्डराय ने उसके प्रयास का उसका नाश किया और इस तरह अपना बदला भी चुका लिया। इस.स । चुका लिया। इस,सफलता पर उन्हे
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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