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________________ भास्कर माग ६ इन शिलालेखों में भी यह शब्द देखने के लिए मिलते हैं। यहां के प्रारंभिक नमूने यह हैं: (१) "सिद्धम् स्वस्ति" (३) 'स्वस्ति श्री" (8) 'श्री स्वस्ति (५) 'सिद्धम्। 'श्रीमत्परमगम्भीर-स्याद्वादामोघलाञ्छनं । ___जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥" (७) 'श्रीमत्स्याद्वादमुद्राङ्कितममलमहोनेन्द्रचक्रेश्वरेड्य जैनीयं शासनं विश्रुतमखिल हितं दोषदूरं गभीरं । इत्यादि 'भद्रं भूयाग्जिनेन्द्राणा शासनायाघनाशिने । कुतीर्थ-ध्वान्तसंघातप्रभिन्नघनभानवे ॥१॥ (९) 'श्रीजयत्यजय्यमाहात्म्यं विशासितकुशासनं । शासनं जैनमुद्भासि मुक्तिलक्ष्म्यैकशासनं ॥ (१०) 'श्रीगणेशाय नमः उपर्युक्त नं० ६, ७ आदि श्लोकों के उपरांत 'नमः सिद्धभ्यः'-'नमो वीतरागाय'-'नमा जिनाय'-'स्वस्ति' आदि वाक्य भी मिलते हैं। लेख नं० ४३६ मे 'श्री श्री गोमटेशाय नमः लिखा हुआ है। इनसे स्पष्ट है कि जैनशिलालेखों के आदि वाक्य उपयुक्तरूपेण होते है। ___ यहाँ के कई शिलालेखों मे भ० महावीर के निर्वाण का संवत् भी दिया हुआ है, जिसस उस संवत् का बहु प्राचीनकाल से प्रचलित होना स्पष्ट हैं। लेख नं० ४५५ मे शालिवाहन शकान्द १७८० और वीरनिर्वाणाब्द २५५१ दिया है। इसी तरह लेख नं० ४३५ (३५५/१ ४३६ (३५६) में है। इस गणना का आधार प्रकट होना आवश्यक है। १ लेख नं०१ (१) २ नं० ३ (१२), ६ (९), ७ (२४) आदि । ३ नं०५(१८), २१ (२९), २३ (३८) इत्यादि। ४ नं० ३८ (५९), १४० (३५२)। ५ नं० ३५ (७६)। ६ जै०शि० सं०, पृ० २१, ३३, ४२, ४९, ५२, ६६, ८१, ८५ आदि । ७ ०शि०सं०, पृ० ३०। ८ जै०शि०सं०, पृ०५५-५८॥ ९ जे०शि०सं०, पृ० २०९ । १० जै०शि० सं०, पृ० ३३५ ।
SR No.010062
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain, Others
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1940
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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