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कोर्ट में मुकद्दमा गया और लाखों रुपये बरबाद हुए। एक दिन जज साहब पूछताछ करने के लिए उस वृक्ष को देखने आये । वहां आकर कहा कि 'काट दो इस नाशकारी वृक्ष को जिसके कारण इतना कष्ट इन दोनों भाइयों को और मुझे उठाना पड़ा। आखिरकार वह पेड़ कटवाया तक शांति हुई।
विचारिये बालको ! कितनी मूर्खता उन्होंने की, आधा आधा लेकर राजी नहीं हुए । अन्त में क्या हाथ आया ? कुछ भी नहीं । प्यारे वन्धुओ ! अपने सिर पर लगने वाले इस कलंक को हटाओ और आदर्श बन्धु बनो ।
पाठ ५-निर्दयता का फल
विलायत में एक स्त्री थी। उसके रहने के लिए न मकान था, न खाने के लिए अन्न । धनवानों से उसने बहुत विनती की परन्तु किसी ने ध्यान नहीं दिया। भूख
और प्यास से वह बेचारी बहुत दुखी हो गई । थोड़े दिनों में वह बीमार हो गई परन्तु किसी ने भी उसकी दवा न की । अन्त में वह मरगई और बहुत दिनों तक घर में