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________________ ( ७५ ) पाठ ४६–कषाय से गति । (१) अनन्तानुबन्धी से प्रायः नरक गति मिलती है। (२) प्रात्मबोध ( निश्चय समकित ) बिना अप्रत्यारुपानी से प्राय:तियेच गति मिलती है। (३) प्रत्याख्यानी से प्रायः मनुष्य गति मिलती है । (४) संज्वलन से प्रायः देवगति प्राप्त होती है । (५) अकषाय से मोक्ष प्राप्त होता है । सार:इस प्रकार कषाय का स्वरूप व फल का ज्ञान करके क्रोध, मान, कपट, लोभ, राग द्वेष रूप कषाय को अनन्त अपार दुःखदाता जानकर त्याग करना चाहिये । पाठ ४७–कषायों के नाश के उपाय । (१) क्षमा से क्रोध का नाश होता है।। (२) विनय से मान का नाश होता है । (३) सरलता से कपट नष्ट होता है। (४) संतोष व त्याग से (दान से) लोम का नाश . रोता है। (५) समभाव से राग द्वेष नष्ट होते हैं ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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