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(. ७१: ) (३) अनुभाग बंध-फल देने की शक्ति की न्यूनाधिकत्ता का होना ही अनुमाग बंधः है।
(४) प्रदेश बन्ध-बंधनेवाले कर्मों की संख्या के निर्णय (प्रदेश के पुंज ) को प्रदेश बंध कहते हैं। (कर्म पुंजा समूह) प्रकृति और प्रदेश बंध, मन वचन और काया की प्रकृति से होता है । स्थिति तथा अनुमाग बंध राग द्वेषादि कषायासे होता है।
जीव विशुद्ध स्वतंत्र है, किया बंध ने रुद्ध । बंध तोड़कर जीव को, करो स्वतंत्र विशुद्ध ।।
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पाठ ४१-मोक्ष तत्त्व। सकल कर्मों के क्षय होने को मोक्ष कहते हैं। उसकी प्राप्ति के चार उपाय हैं।
(१) सम्यक् ज्ञान-नवतत्वों का अनुभव ज्ञान करके हिताहित का जानना। ___(२) सम्यक् दर्शन-आत्मा के शुद्ध स्वरूप का निश्रय, यथार्थ तत्व श्रद्धा । ___ (३) सम्यक् चारित्र-झान पूर्वक आचरण अर्थात् क्रोधादि कषायों का रोकना ।