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________________ ( ६७ ) (१०) राग-अनुकूल संयोगों में हर्ष आना । वैराग्य -'. __ अनुकूल वस्तू का मी त्याग करना । ___(११) द्वेष-प्रतिकूलता में शोक करना । प्रेम-सब जीवों को अपना भाई समझना । = (१२) कलह-शांति का भंग करना । एकता-सच की शक्ति को एकत्रित करना। (१३) अभ्याख्यान-बिना विचारे बोलना। किसी __ को दोषी कहना। विवेके वचन-विचार पूर्वक बोलना, E दोषी को एकान्त में मीठे वचनों से समझाना । (१४) पैशुन्य या चुगली-किसी को नुकसान पहुँ चाने को उसके दोष कहना चुगली करना सिफारिश-किस का मला करने के लिये उसके गुण बोलना। . (१५) परपरिवाद-किसी के पीछे दुर्गुण बोलना निन्दा करना । गुणानुवाद--सद्गुण बोलना । (१६) रति-इष्ट में खुशी, अरति-अनिष्ट में दुखी । उदासीनता-सुख दुख में समभाव । (१७) माया मांसो-कपट सहित झूठ अर्थात् जान कर झूठ बोलना । शुद्ध सत्य-भय को छोड़ यथार्थ वर्तना। (१८) मिथ्यात्व-परवस्तु, शरीर, धन, भोगादि को अपने मानना । समकित-सच्ची मान्यता, शरीरादि को भिन्न मानकर अविकारी अनन्त ज्ञानादि गुण युक्त शुद्ध आत्मा का अनुभव करना ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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