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हथियार को शरमाने वाला होता है । जैन जगत् मात्र को अपना मानता है । सत्य को शोधता है । कोई भी बिना जीताये नहीं जाता वह तो सबको जीत लेता है । जैन पहाड़ जैसा स्थिर है, मृत्यु से नहीं डरता, अपने ध्येय का चिपट जाता है । जैन ऐसा गहरा और पूरा भरा होता है कि छलकता नहीं।
जहां जैन के पाँच पड़ते हैं, वहां कल्याण और शान्ति फैन जाती है । जैन के हृदय की गहराई में ज्ञान, क्षमा, प्रेम, धैर्य, श्रद्धा और भक्ति भरी पड़ी रहती है । जैन की तपस्या को इन्द्र का दण्ड भी नहीं तोड़ सक्ता । जैन सदा जागृत होता है । जैन सदा उदार दिल होता है।
अपन ऐसे आदर्श अर्थात् सच्चे गुणधारी जैन बन यही भावना ।
(श्री बन्सी)
पाठ २८-जैन धर्म और अजैन विद्वान् ।
लेखक-कवि नन्हालाल दलपतराय एम० ए० । (१) जैन धर्म प्रान्त धर्म है, देश धर्म है, और जगत् मात्र का धर्म है । अहिंसा का आदेश, गुजरात भारत और समस्त जगत् के लिये है !