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जैन इतिहास पाठ २७-"श्रादर्श-जैन । जैन का स्वभाव क्षत्रिय अर्थात् रक्षा प्रेमी होता है । जैन का मग़ज़ शान्त और शरीर गर्म अर्थात् कार्यकुशल होता है।
जैन की निहा में मिठास तो ऐसी होती है कि पत्थर मी पिघल जाय । वे बोलते थोड़ा लेकिन सत्य और मीठा । जैन का मुँह चन्द्रमा से अधिक शीतल और सूर्य से अधिक तेजस्वी होता है । कारण क्रिोध व लोभ रहित है।
जैन की आँखों से वीरता भरा हुआ अमी रस टपकता है और सुशीलता के भार से नीचे नम जाती है और पलक में भलमनसाहत की रेखा नजर पड़ती है ।
जैन के हाथ दानी और पाँव परोपकारी होते हैं। जैन का चहरा अमृतभरा होता है । जैन का हृदय शत्रु के
शादर्श सघा, जैसा चाहिये वैसा । शोध प लोभ से चहरा गिटता है, शोध में मान य लोभ में । वापर प्राय. रहता।