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( १२४ ) उसी प्रकार जीव धर्माराधन में दुख मानता है
और विपयी-कपायी पापी प्रवृत्ति में सुख मान
रहा है। (५७) पशु, पक्षियों को संतान साता नहीं देते हैं तदपि
वे उनके लिये मिथ्या मोह रखते हैं उसी प्रकार
मानव भी मिथ्या मोह रखता है। (५८) सती स्त्री प्राण जाने पर भी पर पुरुष की इच्छा
नहीं करती उसी प्रकार ज्ञानी विषय-कपाय में
नहीं फंसते. और आत्म रमणता करते हैं। (५९) आत्म घातक सब कृत्य आत्म व्यभिचार हैं। (६०) तेल, बत्ती व बर्तन के योग के दीपक जलता है
उसी प्रकार ज्ञान दर्शन व चारित्र के योग से
आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है। (६१) अंध के हाथ में दिया होने पर भी उसे कुछ नहीं
सुझता उसी प्रकार अज्ञानी को चाहे जितने प्रत्यक्ष व परोक्ष प्रमाण बताये जाय तो भी उस पर कुछ
असर नहीं होती। (६२) भविष्यति इति भव्य जिसमें सम्यक् ज्ञान, दर्शन
व चारित्र उत्पन्न होने की सत्ता है वह भव्य है ।
और जिस में इनका अभाव है वह अभव्य. (६३) आंख के बिना शरीर निरर्थक उसी प्रकार धर्म . विना मानव जन्म निरर्थक है।