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________________ (८७) स्कंध) गरीब के यहां आरंभ कम होता है और धनवान के यहां अधिक । धनवान् धनबल के कारण जीर्णावस्था में भी अनेक शादियां करके विषय वासना का पोषण करता है और गरीव का प्रथम लग्न ही बड़ी मुश्किल से होता है। दैव्यवशात पहली स्त्री का प्राणान्त होजाय तो दूसरी मिलना असंभव हो जाता है। गरीब के रहने के लिये झोंपड़ी होती है जो बहुत ही अल्प आरंभ से बनती है। धनवान के लिये विशेष मकान बनते हैं जिनके लिये गहरी नींव खोदी जाती है पत्थरों की खदाने खुदवाई जाती हैं तथा चूने की भट्टियां पकाई जाती हैं। इनमें अनेक स्थावर एवं प्रस जीवों की विराधना होती है कई मंजिले मकान बनने पर छतों पर से मनुष्य गिरकर मरने की भीति रहती है निर्धन का जीवन सादा होता है और धनवान् का अधिक विलास एवं विकारमय । अब धर्मस्थानकों की तरफ दृष्टि डालिये। मुनी महात्माओं की सेवा भक्ति करने वाले व्याख्यान-वाणी श्रवण करने वाले तथा नवरंगी सप्तरंगी एवं पचरंगी दया-पौषध करने वाले ज्यादहतर साधारण स्थिति के ही व्यक्ति मिलेंगे । ऐसी जगह धनवानों के ता दर्शन भी दुर्लभ रहते हैं । वे संवत्सरी आदि पर्यों पर आकर परिपद को सुशोभित कर देते हैं। समाज इतने ही को उपकार स्वरुप समझ लेती है । इस पर से यही जाहिर
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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