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(७२) एक सेकंडमें करोडों दीपकों को बुझा देते हैं और विजली का पावर और तेल की रक्षा करते हैं ।
जिह्वा-खास प्रसंग होने पर ही फोनोग्राफ, हार्मोनियम, अलार्म घड़ी आदि बजाये जाते हैं । विना प्रसंग के उन्हें कोई भी नहीं बजाता।
शरीर-आवश्यकता पड़ने पर ही मोटर, सायकल अथवा बग्गी चलाई जाती है ओर आवश्यकता पड़ने पर ही घड़ी में चावी भरी जाती है।
यंत्रवाद (विज्ञान) ने पांचों इंद्रियां के समान उपरोक्त यंत्र तैयार किये हैं जो इद्रियों के सदृश ही या उनसे अधिक कार्य करके दिखाते हैं दूरबिन, टेलिफोन, बिजली, थर्मामिटर, फोनोग्राफ तथा सायकल, आदि उपरोक्त वस्तुएं पचास या सौ रुपये सरीखी छोटी रकम में खरीदी जा सकती है और उनका मनमें आवे तब मन थाहा उपयोग इंद्रियों के समान किया जा सकता है पचास रुपये के फोनोग्राफ को इसका खरीदने वाला कितनी हिफाजत से रखता है ? अपने स्नेही को भी
गने पर भी नहीं देता है। तथा खुद भी ब्याह शादी भा, सम्मेलन तथा त्यौहार सरीखे क्वचित प्रसंगों पर ही उसका थोड़ी देर के लिये उपयोग करके बादमें सम्हाल कर आहिस्ते से पेटी मे बंद करके रख देता है। फोनोग्राफ ज्यादह,समय तक वजाने में अथवा बिजली आदि का कोई खर्च नहीं होता है सिर्फ उसकी सुई ही घिसती