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________________ (७१) यंत्र और इंद्रियां. आत्मधर्म में साधक और वाधक इंद्रियां का सदुपयोगः एवं दरुपयोग ही है। मनुष्य अपने पास के कुल ___ पदार्थों की रक्षा उत्कृष्ट रूप से करता है। मिट्टी के ढेले की रक्षा करता है। पैसे में मिलने वाली २५ सुइयों में से एक सुई भी गुम जाय तो उसे ढूंढता है। एक पैसे में मिलने वाली सैकड़ों दियासलाईयों में से एक दियासलाई नीचे गिर जाय तो उसे उठा लेता है । कागज पर के गीले हरफों को सुखाने के लिये डाली गई रेती को भी वह वापिस डिबिया में उडल लेता है। इस तरह एक तरफ वह तुच्छाति तुच्छ वस्तुओं की भी रक्षा करता है लेकिन दूसरी तरफ अमूल्य इंद्रियों को पाप कर्म में लगाकर उनकी अनंत शक्तियों का महान दुरुपयोग करता है । श्रोत्र- आवश्यकता पड़ने पर ही टेलीफोन से आवाज सुनता है । टेलीफोन की शक्ति का निरर्थक कोई क्षय नहीं करता। चक्षु- आवश्यकता पड़ने परही दुरवीन, विजली की चॅटरी, दिया अथवा चश्मे का उपयोग किया जाता है भारत के पेंतीस करोड मनुष्यों में से ऐसा कोई मूर्ख मनुष्य सुनने में या पढ़ने में नहीं आया कि जो सूर्योदय का प्रकाश फैलने पर दिया या बिजली जलाता हो किन्तु सूर्योदय होते ही विश्वभर के मनुष्य शीघ्रता से एक साथ
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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