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( २८ ) पार शांति से विचार करके सो जामो जिससे निश्चित समय पर जागृत हो जाओगे ।
सोते समय बायीं वाजू नीचे रखना जिससे जीमणा स्वर (पर्य स्वर ) चल करके भोजन शीघ्र हजम हो जाय च वीर्य दोष न हो।
पाठ १६--वेगों के रोकने में उपद्रव ।
वेग न रोकने का यहां अर्थ-शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकलने लगें तब उन्हें आलस्य प्रमाद या लोम वश नहीं रोकना, यह है ।
रोग भी विष के निकलने की क्रिया है । रोग के जहर का सर्वथा नाश करने का सर्वश्रेष्ठ उपाय लंघन (उपवास) है। जो शीघ्र दवा लेते हैं वे सदा रोगी रहते हैं।
मूत्र-निग्रह के रोग-मूत्र के रोकने से वस्ति और सूत्रेन्द्रिय में शूल पैदा हो जाता है। उसका मूत्र बड़े कष्ट
से उतरता है । सिर में दर्द और पेट में दर्द हो जाता है। .. इसलिये मूत्र के वेग को कमी न रोकना चाहिये ।