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जैन शिक्षा( तीसरा भाग )
पाठ १ -- प्रार्थना-नीति शिक्षण ।
वीतराग सर्वक्ष हितंकर, शिशुगण की श्रव पूरो आश ।
ज्ञानभानु का उदय करो श्रव, मिथ्यातम का होय विनाश ॥ १ ॥
जीवों की हम करुणा पाले, झूठ वचन नहीं कहें कदा |
चोरी कबहु न करि है स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें तृष्णा लोभ वढ़े न हमारा, तोष सुधा नित श्री जिन धर्म हमारा प्यारा, इसकी सेवा मात पिता की आज्ञा पाले, गुरु की भक्ति धरें उर में । रहें सदा हम कर्तव्य तत्पर, उन्नति करें निज २ पुर में ॥४॥
दूर भगावें वुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करे प्रचार | 'मेल मिलाप बढ़ावें हम सब धर्मोन्नति का करें विचार ॥ ५॥
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सुख दुख में हम समता धारें, रहे अटल जिमि सदा अचल | न्याय मार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करे निज आतम वल ॥ ६ ॥ श्रष्ट कर्म जो दुख हेतु है, उनके क्षय का करें उपाय । नाम आपका जपै निरंतर, विघ्न शोक सब ही टरजाय ||७| हाथ जोड़ कर सीस नमावें, वालक जन सब खड़े खड़े । अशाएँ ये पूर्ण हुऍ प्रभु, चरण शरण में जान पड़े ||८||
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सदा ॥२॥ पिया करें ।
किया करें ॥३॥