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________________ (६७) खाने देती हैं। उनके मरने के बाद संग्रहित धान्य एवं संचित मधु के भंडार ज्यों के त्यों पड़े रह जाते हैं । ठीक यही दशा लोभी मनुष्य की भी है । अंतर केवल इतना ही है कि चींटियां तथा मक्खियां मनुष्य के बराबर असत्य, अनीति, अन्याय, कूड एवं कपट नहीं करती है।, वे अपना निर्दोष जीवन व्यतीत करती है और मनुष्य अपना पापमय जीवन व्यतीत करते है। मनुष्य को पाप से डर नहीं है। पूर्व कथनानुसार करोडों हिंस्र पशु पक्षी हिंसामय अनंत भव व्यतीत कर जितना पाप कर्म अर्जन नहीं करते हैं उतना पाप कर्म एक मनुष्य अंतरमुहर्त में अर्जित कर सकता है । धर्महीन मनुप्य का जीवन विश्वक तमाम जीवोंसे अधम है । एक अंग्रेज तत्वज्ञ लिखता है कि " A great man without religion is no more than a great beast without soul." अर्थात् धार्मिक जीवनमे विरहित बडा पुरुप आत्माहीन वृहत्काय पशु से बढ़ कर नहीं है। पशु को अपने हिताहित का बोध नहीं है। मैं कौन है ? कहांसे पाया है ? कहां जाऊंगा? मैं क्या कररहा हूं? मुझे क्या करना चाहिये ? इन पातों का उमे पत्किचित भी बोध नहीं है। मनुष्य में यह रात नहीं है। उने इनका ज्ञान है। पशु में जान है, मनुप्प में जान होते हुए भी मनुप्य अपने जीवन का दुरुपयोग करता। अतः उमक समान प्रधम और कान होनकता है?
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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