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(३२) हाय ! यह धंधा मेरे नसीब में कहां से आया मेरे जैसा पतित पापी अन्य कोई इस संसार में नहीं होगा. कोडी कोड़ो जोड़कर सैकडों वर्षों की मिहनत से भूख प्यास, शरदी और गरमी को सहन करके एकत्रित किया हुआ धन यह उसके सैकड़ों वर्ष के जीवन के खून चूसने बरापर है. किन्तु क्या किया जाय पापी पेट रोटी तो, मांगता ही है. ऐसा विचार करके उसने निश्चय किया कि चोरी ऐसी जगह करना चाहिये कि जहां उसके मालिक को कष्ट न, हो, जंबू कुमार नव विवाहित हैं उनके वहां पर “करोड़ों, सौनेया का ढेर आया हुआ है और उनके पास पहिले से भी बहुत संपत्ति है इसलिये उनके वहां चोरी करना. योग्य है ग्राम में प्रवेश करते हुए मार्ग में जो मिला उसे उसने कहा कि मैं प्रभव चोर हूं और चोरी करने के लिये जंबकुमार के वहां जा रहा हं तुम सब ग्राम वाले निश्चित रहो अगर जंबुकुमार के वहां धन हाथ नहीं लगेगा तो खाली हाथ वापिस लौट जाऊंगा किन्तु आप किसी को कष्ट नहीं दूंगा. पाठकगण ! सोचिये, चोर के अंतःकरण में कितनी दया व अनुकंपा है. ५०० चोरों के साथ वह जंबुकुमार के वहां पर गया और चोरी करके सौनये की गठरी बांधी। उस समय जंबुकुमार अपनी नव विवाहित वधुओं को उपदेश दे रहे थे उसकी आवाज प्रभव के कान
में पहुंची तो वह ध्यान लगाकर उनकी वार्तालाप सुनता .. हा. मुनते सुनते उमपर उस वार्तालाप का इतना प्रभाव