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________________ · ( ११ ) का जीवन पशु, पक्षी अथवा विकलेंद्रिय कीट पतंगों के सदृश ध्येय विहीन व्यतीत होता है । उनके समान हलन, चलन, खान पान आदि क्रियाएं मनुष्य भी करता है । जैसे वे अज्ञानी हैं वैसे मनुष्य भी अज्ञानी बनकर अपना जीवन पूरा करता है और अन्त में इच्छा न होते हुए भी मर जाता है । 1 धर्म के मर्म से अनभिज्ञ यह मनुष्य संसार ज्ञानियों की दृष्टि में सिनेमा की बोलती, गाती, चलती, फिरती फिल्म के समान है | आजकल के राजाओं की आज्ञाओं और उनके बनाये हुए कानूनों पर तो मनुष्य को विश्वास और श्रद्धा है और उनका वह अक्षरशः पालन करता है क्योंकि वे प्रत्यक्ष हैं । किन्तु धर्म शासनकर्ता और उनके फरमान परोक्ष होने से उनकी आज्ञाओं पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है कारण Out of sight out of mind. लौकिक का जितना आदर है उतना ही लोकोत्तर का अनादर हो रहा है । इन पर जितनी पूज्य दृष्टि है, उतनी ही उन पर अपूज्य दृष्टि का अनुभव हो रहा है । शास्त्रकार ने हिंसा को सिंह, विषय को सर्प और कपाय को अग्नि की उपमा दी है किन्तु क्या कोई लोकोतर पुरुष का पुजारी हिंसा, विषय और कपाय का सिंह सर्प और अग्नि के समान भय रखता है ? शरीर रक्षा ही मनुष्य का एक मात्र ध्येय है । उसने
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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