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काव्य विलास
रोगादिक पीडित रहै, महा कष्ट जो होय | तब हू सूरख जीव यह, धर्म न चिन्तै कोय ॥ २१ ॥ मरन समय विललात है, कोई न लेय बचाय | जाने ज्यों त्यों जीजिये, जोर न कछु बसाय ||२२|| फिर नरभव मिल्लियो नहीं, किये हु कोटि उपाय । ताते वेगहि चेत हू, अहो जगत के राय ||२३|| भैया की यह वीनती, चेतन चितहि विचार । ज्ञान दर्श चरित्र में, आपो लेहु निहोर ||२४|