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श्रीआत्म-बोध
भी हवा से जीती है ( विना हवा के जलती हुई आग अथवा दीपक बुझ जाता है।)
६-जैसे मनुष्य आक्सिजन (प्राण वायु) लेता है और कार्बन (विष वायु ) वाहिर निकालता है वैसे ही अग्नि भी अक्सिजन लेकर कार्वन बाहिर निकालती है।
७-कोई जीव अग्नि की खुराक लेकर जीते हैं जैसे, भरतपुर के पास एक गाँव मे एक पछड़ा घास के बदले आग खाता है।
मारवाड़ के रेगिस्तान में बिना पानी सख्त गर्मी में लाखो चूहे जीते हैं।
चूने की भट्टी के चूहे अग्नि ही में जीते है। फिनिक्ष पक्षी को भी अग्नि मे पड़ने से नवजीवन मिलता है। आम्र, नीम आदि वृक्ष ग्रीष्म ऋतु मे ) सख्त ताप मे ही फलते-फूलते हैं ।
जिस प्रकार दूसरे जीव गर्मी के बढ़ने पर तथा गर्मी में रह सकते हैं उसी प्रकार अग्नि काय के जीव अग्नि मे रह सकते हैं।
सुमति-ठीक है भाई। अब वायुकाय मे जीव है उनकी सिद्धि कृपा कर बतानी चाहिये।
जयंत-वाउकाय ( हवा पवन ) भी जीवो का पिण्ड रूप है और यह बात प्रत्यक्ष सिद्ध है।
१-हवा हजारो कोख चल सकती है और वह एरोप्लेन (हवाई जहाज-विमान ) को चलने की गति दे सकती है।
२-हवा दशो दिशाओ मे स्वतंत्र वेग से पहुँच सकती है और बड़े वृक्ष, महलातो को उखाड़ गिरा सकती है।