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________________ ३० श्रीआत्म-बोध पत्रो मे पढ़कर हम सच मानते हैं। वेडरो के कथन को भी सच मानते हैं। इसी पकार छ काय का स्वरूप तीर्थंकर प्रभु जैसे सर्वज्ञ बतागए हैं और गणधरो ने यह स्वरूप शास्त्रो में गूंथा है । ऐसे महापुरुषो के वचनो पर अपने को विश्वास रखना चाहिये । सुमति-मित्रवर माना कि अपन तो विश्वास (श्रद्धा)) रक्खेगे लेकिन दूसरों के दिल में यह बात कैसे जमाई जाय ? अभी तो विज्ञान का जमाना है । लोक प्रत्यक्ष प्रमाण मांगते हैं । उसका फिर क्या ? जयंत-भाई, विश्वास रखे बिना तो काम ही नहीं चलता। बडो के वचन पर विश्वास न हो तो सच्चे मा बाप कौन है, यह भी मालूम न हो सकता। इसलिए अपने वीतराग देव के वचन पर श्रद्धा रखनी चाहिए। साथ यह भी जरूरी है कि इस बात को तर्क और प्रमाण से भी सिद्ध करने का भी प्रयत्न करे। छ काय (भाग २) सुमति-सुज्ञ वन्धु | आपका कहना ठीक है। मुनि महाराज भी फरमाते हैं कि सच्चे (निर्दोष और निस्पृह ) देव, गुरु धर्म पर श्रद्धा रखना ही समकित का लक्षण है, परन्तु भाई, अभी के जमाने मे केवल श्रद्धा ही से काम नहीं चलता । इसलिए बाहिर के प्रमाण से आप मुझे छ काय जीवो की सिद्धि करके बताओ, ऐसा मैं इच्छुक हूँ। जयंत-जिज्ञासु भाई, सुन ! पृथ्वी काय में चैतन्थ (जीव) हैं, इस बात की सिद्धि के लिए ये प्रमाण हैं -
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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