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________________ श्रीआत्म-बोध ३४-स्वामी श्रद्धानदजी की प्रतिज्ञा-गुरुकुल की स्थापना न होवे वहा तक घर में पैर न रखना । है कोई जैन वीर ? ३५-दूसरे के दोष देखना यह खुद के दोष द्वार खुले करने के समान है। ३६-बुद्धि यह चौधार खड़ग है। श्रीयुत अमृतलाल पाढीयार कृत १-मन को हड़कवा, शरीर को क्षय, दुद्धि को कोलेरा, गरदन को प्लेग की गांठ हाथ और पैर मे लकवे की बीमारी आज के श्रीमतो को लगी है। २--एक रोटी का टुकड़ा खाने वाला भी जगत मात्र का ऋणी है। ३-लीलोती के त्याग करने वाले ने क्या अनीति, असत्य, और कूड कपट के त्याग किये है ? ४-अष्टमी चर्तुदशी के उपवास करने वाले ने क्या वालविवाह, वृद्ध-विवाह, वेजोड़ विवाह, कन्याविक्रय, वर विक्रय और नुगते मे जीमने का त्गग किया है ? ५५-सवत्सरी से क्षमा के साथ क्या संतोप की याचना की है ? ५६-प्रभुस्तुति करनेवालो ने क्या विकथा निन्दा का त्याग किया है?
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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