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प्यारे विद्यार्थियो ! आप भी उनकी ही संतान हैं तो वैसे ही बली. विद्वान, वीर और धीर वनें ।
२७ – पार्श्वनाथ भगवान
बनारस नगरी में एक बाबा आया था । उस के लंबी दाढ़ी और लम्बे केश थे। वह चौरासी धूनी जता कर तप करता था। गाँव के सब लोग उसको वन्दना करने के लिए जाते थे । एक दिन पार्श्वनाथ कुमार खेलते-खेलते वहाँ चले गए। उन्होंने बाबा से कहा - "अरे बाबाजी, यह क्या कर रहे हो ? धर्म कर रहे हो कि पाप ?"
बावाजी - कुमार, तुम क्या कहते हो ?
कुमार - मैं सत्य बोल रहा हूँ । देखिये ! आपकी लकड़ी में साँप जल रहे हैं । आप सच्चे धर्म को समझने ही नहीं । धर्म वही है जिससे सब जीवों को सुग्व और शान्ति मिले। किसी को दुःख न हो। आप तो धर्म क्या कर रहे हैं, धर्म के नाम पर पाप बढ़ा रहे हैं ।
कुमार पार्श्वनाथ का यह कहना ही थ कि भाषा का मुँह क्रोध से लाल हो गया ।