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कर्मवीर श्री तनसुखरायजी
जीवन के पश्चात् नाम उसका ही रहता, सत्य-सिद्धि के लिए कष्ट जो बहुधा सहता, वह मनुज-रत्न होता है, सब कुछ पावन, पर सेवा के लिए करे जो अर्पण तन-मन, श्रीयुत् तनसुखराय ने, की जो सेवा धर्म की,
व्याप रही है आज भी, यश गाथा सत्कम की ॥१॥
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श्री गुणभद्र जैन,
कविरत्न
श्री मद्राजचंच प्राधम
मागास (सौराष्ट्र)
सेवक मिलते जहां-तहाँ, स्वार्थी अभिमानी, ___करते आग्रह विधा सर्वदा वे मनमानी, - ' कहकर कलियुग दोष, सत्य को नहिं अपनाते,
करते स्वय अनीति, अन्य से और कराते, सेवक लालाजी सदृश, है मिलना दुर्लभ महा,
सेवा का प्रादर्श ही, नस-नस मे जिसके रहा ॥२॥
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