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है । जयकीर्ति ने अपने छन्दोऽनुशासन के अन्त मे लिखा है कि उन्होने माण्डेव्य, पिंगल, जनात्रय, शैतव, श्रीपूज्यवाद और जयदेव यादि के छन्दशास्त्रो के आधार पर अपने छन्दोऽनुशासन की रचना की है । ' वाग्भट का छन्दोऽनुशासन भी इसी कोटि की रचना है और इस पर इनकी स्वोपज्ञ टीका भी है । राजशेखर सूरि ( ११४६ ई०) का छन्द शेखर और रत्नमञ्जूषा भी उल्लेखनीय रचनाएं है ।
इसके अतिरिक्त जैनेतर छन्द शास्त्र पर भी जैनाचार्यों की टीकाएँ पायी जाती है । केदारभट्ट के वृत्तरत्नाकर पर सोमचन्द्रगणी, क्षेमहसगणी, सभयसुन्दर उपाध्याय आसड और मेरुसुन्दर आदि की टीकाएं उपलब्ध है । इसी प्रकार कालिदास के श्रुतबोध पर भी हर्ष कीर्ति और कातिविजयगणी की टीकाएँ प्राप्त है । संस्कृत भाषा के छन्द-शास्त्रो के सिवा प्राकृत और अपनश भाषा के छन्दशास्त्रो पर भी जैनाचार्यों की महत्वपूर्ण टीकाएं उपलब्ध है ।
कोष -
कोष के क्षेत्र मे भी जैन साहित्यकारो ने अपनी लेखनी का यथेष्ट कौशल प्रदर्शित किया है | अमरसिहगणीकृत अमरकोष सस्कृतज्ञ समाज मे सर्वोपयोगी और सर्वोत्तम कोष माना जाता है । उसका पठन-पाठन भी अन्य कोपो की अपेक्षा सर्वाधिक रूप मे प्रचलित है । घनजयकृत घनजयनाममाला दो सौ श्लोको की प्रल्पकाय रचना होने पर भी बहुत ही उपयोगी है। प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थियो के लिए जैन समाज मे इसका खूब प्रचलन है ।
अमरकोष की टीका ( व्याख्यासुधाख्या) की तरह इस पर भी अमरकीर्ति का एक भाष्य उपधब्ध है । इस प्रसग मे आचार्य हेमचन्द्रविरचित श्रभिधानचिन्तामणि नाममाला एक उल्लेखनीय कोशकृति है । श्रीधरसेन का विश्वलोचनकोप, जिसका अपर नाम मुक्तावली है एक विशिष्ट और अपने ढंग की अनूठी रचना है। इसमे ककारातादि व्यजनो के क्रम से शब्दो की सकलना की गयी है जो एकदम नवीन है ।
मन्त्रशास्त्र
मन्त्रशास्त्र पर भी जैन रचनाएं उपलब्ध है । विक्रम की ११वी शती के अन्त और बारहवी के आदि के विद्वान् मल्लेषण का 'भैरवपद्मावतिकल्प, सरस्वतीमन्त्रकल्प और ज्वालामालिनीकल्प महत्वपूर्ण रचनाएँ है। भैरव पद्मावतिकल्प मेरे मन्त्रोलक्षण, सकलीकरण, दव्यचन, द्वादशरजिकामत्रोद्वार, क्रोधादिस्तम्भन, अगनाकर्षण, वशीकरण यन्त्र, निमित्तवशीकरणतन्त्र और गारुडमन्त्र नामक दस अधिकार है तथा इस पर बन्धुषेग का एक संस्कृत विवरण भी उपलब्ध
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१ -- मॉडल्य - पिंगलज्जनाश्रय संतवाख्य ।
श्री पूज्यपादजयदेव - बुधादिकाना |
छन्दासि वीक्ष्य विविधानपि सत्प्रयोगान, छन्दोनुशासनमिद जयकीर्तिनोक्तम् ॥
२ - इस ग्रन्थ को श्री साराभाई मणिलाल नवाब अहमदावाद ने सरस्वतीकल्प तथा अनेक परिशिष्टो मे गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशित किया है ।