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प्रसिद्ध देशभक्त, कर्मवीर समाजसेवी
श्रीमान् ला० तनसुखरायजी का जीवन चरित्र
कर्मवीर ला० तनसुखरायनी
लालाजी के मन मे भावना थी :
श्री सुमेरचन्द जैन, शास्त्री साहित्यरत्न, न्यायतीर्थं
किसी कवि ने कितनी सुन्दर उक्ति कही है कि हे माता ! तू ऐसा पुत्र उत्पन्न कर जो भक्त हो, दाता हो या शूरवीर हो । नही तो क्यो अपनी शक्ति व्यर्थ मे नष्ट करती है । नि सदेह ससार मे उन्ही पुरुषो का नाम अक्षय बना रहता है जो अपने कार्य और प्रभाव से मानव जाति का हित सचय करते है । देश, धर्म और समाज की सेवा मे अपने जीवन को लगाते है ।
न तन सेवा न मन सेवा, न जीवन और घन सेवा,
मुझे है इष्ट जन सेवा, सदा सच्ची भुवन सेवा ॥
ला० तनसुखरायजी ऐसे ही सत्पुरुप थे। लंबा कद, छरहरा वदन, चाल-ढाल में फुर्ती, हिन्दुस्तानी ढग की छोटी मूछें, दूर तक देखनेवाली आँखे और मुस्कराहट से हर समय भरा हुआ चेहरा, दिल्ली जैसे विशाल नगर मे इस हुलिए से प्राप कही भी लाला तनसुखराय जैन को पहचान सकते थे और बिना किसी हिचकिचाहट से मिल सकते थे ।
एक कुशल वैज्ञानिक व्यापारी, एक प्रभावशाली पुरुष, एक उत्साही कार्यकर्ता लाला तनसुखराय जैन यह सब कुछ है । पर उनके यह सब परिचय अधूरे हैं। वे असल मे एक निःस्वार्थी मित्र हैं । उन्हें प्रकृतिदत्त नई-नई सूमो से भरा दिमाग और प्रभावशाली व्यक्तित्व दिया है। पर इससे भी बढकर हमदर्दी और मुहब्बत से भरा दिल उनके पास है । वे जानते और समझते हैं कि नदी का पानी हमेशा एक ही रफ्तार से नही वहता । जीवन मे उतार-चढाव
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