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साध्य-सत्य
साध्य-सत्य स्वरूप सत्य का ही एक प्रकार है। वस्तु सत्य व्यापक है। परमाणु मे ज्ञान नही होता, अत उसके लिए कुछ साध्य भी नही होता । वह स्वाभाविक काल मर्यादा के अनुसार कभी स्कंध में जुड़ जाता है और कभी उससे विलग हो जाता है ।
श्रात्मा ज्ञानशील पदार्थ है । विभाव- दशा ( शरीर दगा ) मे स्वभाव ( प्रशरीर-दशा या ज्ञान, आनन्द और वीर्य का पूर्ण प्रकाश) उसका साध्य होता है । साध्य न मिलने तक यह सत्य होता है और उसके मिलने पर (सिद्धि के पश्चात् ) वह स्वरूप सत्य के रूप मे वदल जाता है।
साध्य काल मे मोक्ष पूर्ण सत्य होता है और आत्मा श्रधं सत्य । सिद्धि दशा मे मोक्ष और आत्मा का अत (प्रभेद) हो जाता है, फिर कभी भेद नही होता। इसलिए मुक्त आत्मा का स्वरूप पूर्ण सत्य है (त्रैकालिक है, अपुनरावर्तनीय है) ।
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जैन-तत्त्व-व्यवस्था के अनुसार चेतन और प्रचेतन -- ये दो सामान्य सत्य है । ये निरपेक्ष स्वरूप- सत्य है । गति-हेतुकता, स्थिति-हेतुकता, अवकाश हेतुकता, परिवर्तन हेतुकता और ग्रहण ( सयोग-वियोग ) की अपेक्षा - विभिन्न कार्यो और गुणों की प्रपेक्षा धर्म, अधर्म, श्राकाश, काल, और पुद्गल --- प्रचेतन के ये पाच रूप (पाच-द्रव्य) और जीव, ये छह सत्य है । ये विभाग-सापेक्षस्वरूप सत्य हैं ।
भाव (बन्ध - हेतु), सवर (बन्धन-निरोध), निर्जरा ( बन्धन -दाय हेतु ) – ये तीनो साधन सत्य है । मोक्ष साध्य सत्य है । बन्धन-दशा मे ग्रात्मा के ये चारो रूप सत्य है । मुक्त-दशा मे आस्रव भी नही होता, सवर भी नही होता, निर्जरा भी नही होती, साध्य-रूप मोक्ष भी नही होता, इसलिए वहा आत्मा का केवल आत्म-रूप ही सत्य है ।
आत्मा के साथ अनात्मा (भजीव- पुद्गल ) का सम्बन्ध रहते हुए उसके बन्ध, पुण्य और पाप मे तीनो रूप सत्य है । मुक्त-दशा मे वन्धन भी नहीं होता, पुण्य भी नही होता, पाप भी नही होता। इसलिए जीव विमुक्त- दशा मे केवल अजीव (पुद्गल) ही सत्य है । तात्पर्य कि जीव-प्रजीव की सयोग - दशा मे नव सत्य है । उनकी वियोग दवा मे केवल दो ही सत्य है |
व्यवहार नय से वस्तु का वर्तमान रूप (वैकारिक रूप ) भी सत्य है । निश्चय नय से वस्तु का त्रैकालिक (स्वाभाविक रूप ) सत्य है ।
उपयोगिता की दृष्टि से सत्य का विचार निम्न चार विषयो के ग्रास-पास चलता है१. वन्ध, २ वन्ध-हेतु (प्रासव), ३ मोक्ष, ४. मोक्ष हेतु (सवर - निर्जरा ) 1 सक्षेप मे दो है— मानव और सवर । इसीलिए काल-क्रम के प्रवाह मे बार-बार यह वाणी मुखरित हुई है।
भावो भवहेतु स्यात् सबरो मोक्ष कारणम् । इतीयमाहंती दृष्टि रन्यदस्या प्रपचनम् ॥
यही तत्व वेदान्त मे विद्या मोर विद्या शब्द के द्वारा कहा गया है। वौद्ध दर्शन के चार आर्य सत्य और क्या हैं ? यही तो है—
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