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________________ और मैं जानना हूँ कि जब मै चला जाऊगा, जवाहरलाल मेरी ही भाषा से बात करेगा। आपके असली बादशाह जवाहरलाल है। वह ऐसे बादशाह है, जो हिन्दुस्तान को तो अपनी सेवा देना चाहते ही है, पर उसके मार्फत सारी दुनिया को अपनी सेवा देना चाहते है। उन्होने सभी देशो के लोगो से परिचय किया है। जवाहर तो किसी से भी धोखा करने वाले नही है। जैसा उनका नाम है वैसा उनका गुण है। वह आसानी से पिता, भाई, लेखक, यात्री, देशभक्त, या अतर्राष्ट्रीय नेता के रूप में प्रकाशमान है, तो भी पाठको के सामने इन लेखो में से उनका जो रूप उभरेगा वह अपने देश और उसको स्वतन्त्रता के, जिसकी वेदी पर उन्होने अपनी दूसरी सभी कामनामो का बलिदान कर दिया है, निष्ठावान भक्त का रूप होगा। यह श्रेय उन्हे मिलना ही चाहिए कि वह किसी अन्य देश की सहायता की कीमत पर अपने देश की आजादी प्राप्त करना शान के खिलाफ समझेंगे। उनकी राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीयता-जैसी है। ऋतुराज के प्रतीक -रवीन्द्रनाथ ठाकुर नये भारत के सिंहासन पर बैठने का अधिकार निस्सदेह जवाहरलाल को है । जवाहरलाल की शानदार भूमिका है, उनका सकल्प अडिग है । और उनके साहस को रोकने की क्षमता किसी में नहीं है। उन्हे शिखर पर पहुंचाने का काम सत्य के प्रति अटूट निष्ठा और उनके वैद्धिक चरित्र ने किया है । जवाहरलाल ने पवित्रता का मापदण्ड उस राजनैतिक उथल-पुथल के बीच कायम रखा है. जहा प्रवचना, मात्मप्रवचना अक्सर चारित्रिक शुद्धता को नष्ट कर देती है। सत्य को भगीकार करने में खतरा होने पर भी जवाहरलाल कमी सत्य से विमुख नही हुए और न सुविधाजनक होने के कारण कभी भी असत्य से रिश्ता जोडा। छल-प्रपचपूर्ण कूटनीति से मिलने वाली निकृष्ट और सुगम सफलता से जवाहरलाल का प्रबुद्ध मस्तिष्क हमेशा स्पष्ट रूप से अलग रहा है। नीयत की यह पवित्रता और सत्य के प्रति अटूट लगन ही जवाहरलाल की सबसे बड़ी देन है। __ जवाहरलाल हमारा ऋतुराज है, जो प्रतीक है यौवन के पुनरागमन का और विजयपूर्ण उल्लास का । वह प्रतीक है बुराई के विरुद्ध संघर्ष का और स्वतन्त्रता के लिए ऐसी निष्ठा का, जो किसी प्रकार का समझौता करना नहीं जानती। सबके लाडले -वल्लभभाई पटेल जवाहरलाल और मैं साथ-साथ काग्रेस के सदस्य, माजादी के सिपाही, कांग्रेस की कार्यकारिणी और अन्य समितियों के सहकर्मी, महात्माजी के, जो हमारे दुर्भाग्य से हमे जटिल समस्याओ के साथ जूझने को छोड गये है, अनुयायी और इस विशाल देश के शासन-प्रबन्ध के गुरुतर भार के वाहक रहे है । इतने विभिन्न प्रकार के कर्मक्षेत्रो मे साथ रह कर और एक-दूसरे ३५२]
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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