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महात्मा गांधी के २७ प्रश्नों का समाधान
श्रीमद् रायचन्दजी प्रश्न (१)-प्रात्मा क्या है ? क्या वह कुछ करती है ? और उसे कर्म दुख देता है
या नही?
उत्तर-(१) जैसे घट-पट आदि जड़ वस्तुयें है, उसी तरह आत्मा ज्ञानस्वरूप वस्तु है। घट-पट आदि अनित्य है-त्रिकाल मे एक ही स्वरूप से स्थिरतापूर्वक रह सकने वाली नही है । आत्मा एक स्वरूप से त्रिकाल में स्थिर रह सकने वाला नित्य पदार्थ है। जिस पदार्थ की उत्पत्ति किसी भी सयोग से न हो सकती हो वह पदार्थ नित्य होता है । प्रात्मा किसी भी सयोग से उत्पन्न हो सकती है, ऐसा मालूम नहीं होता । क्योकि जड़ के चाहे कितने भी सयोग क्यो न करो तो भी उससे चेतन की उत्पत्ति नही हो सकती। जो धर्म जिस पदार्थ मे नही होता, उस प्रकार के बहुत से पदार्थो के इकट्ठे करने से भी उसमे जो धर्म नही है वह धर्म उत्पन्न नहीं हो सकता । जो घट-पट आदि पदार्थ हैं, उनमे ज्ञानस्वरूप देखने में नहीं आता। उस प्रकार के पदार्थों का यदि परिणामांतरपूर्वक संयोग किया हो अथवा सयोग हुआ हो, तो भी वह उसी तरह की जाति का होता है, अर्थात् यह जड़स्वरूप ही होता है, नानस्वरूप नहीं होता। तो फिर उस तरह के पदार्थ के सयोग होने पर आत्मा अथवा जिसे जानी पुरुष मुख्य 'ज्ञानस्वरूप लक्षणयुक्त' कहते हैं, उस प्रकार के (घट-पट आदि, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश) पदार्थ से किसी तरह उत्पन्न हो सकने योग्य नही । 'ज्ञानस्वरूप' यह प्रात्मा का मुख्य लक्षण है, और जह का मुख्य लक्षण 'उसके प्रभावरूप' है। उन दोनो का अनादि सहज स्वभाव है। ये, तथा इसी तरह के दूसरे हजारो प्रमाण प्रात्मा को 'नित्य' प्रतिपादन कर सकते हैं तथा उसका विगेप विचार करने पर नित्य रूप से सहज रूप आत्मा अनुभव में भी आता है । इस कारण मुख-दुख आदि भोगने वाले उससे निवृत्त होने वाले, विचार करने वाले, प्रेरणा करने वाले इत्यादि भाव जिसकी विद्यमानता से अनुभव में आते है, ऐमी वह आत्मा मुख्य चेतन (ज्ञान) लक्षण मे युक्त है और उस भाव से (स्थिति से) वह सव काल मे रह सकने वाला 'नित्य पदार्थ है । ऐमा मानने मे कोई भी दोप अथवा वाधा मालूम नहीं होती, बल्कि इमसे सत्य के स्वीकार करने म्प-गुण की ही प्राप्ति होती है।
यह प्रश्न तथा तुम्हारे दूसरे बहुत मे प्रश्न इस तरह के है कि जिनमे विशेप लिखने, कहने और समझाने की पावश्यकता है। उन प्रश्नों का उस प्रकार में उत्तर लिखा जाना हाल में कठिन होने से प्रथम तुम्हे पदर्शन समुच्चय ग्रन्थ भेजा था, जिसके बाँचने और विचार करने मे तुम्हें किसी भी अंश मे समावान हो, और इस पत्र से भी कुछ विशेष अश मे ममाधान हो सकना संभव है। क्योकि इस सम्बन्ध मे अनेक प्रश्न उठ सकते है जिनके फिर-फिर समाधान होने मे, विचार करने से समाधान होगा।
(२) ज्ञान दशा में अपने स्वरूप मे यथार्थ वोध मे उत्पन्न हुई दशा में वह
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