________________
सुलझाने में व्यस्त थे, मातृभूमि की परतत्रता के दुख से दुखी होकर गर्म निश्वास छोड़ रहे थे कि इतने मे लड़की के हृदयभेदी चीत्कार ने उन्हे चौका दिया । बात यह हुई कि एक जगली बिल्ली लड़की की रक्खी हुई रोटी उठा ले गई जिससे मारे भूख के वह चिल्लाने लगी। ऐसी-ऐसी अनेक आपत्तियो से घिरे हुए, शत्रु के प्रवाह को रोकने में असमर्थ होने के कारण, वीर चूडामणि प्रताप मेवाड़ छोडने को जब उद्यत हुए तब भामाशाह राणाजी के स्वदेश निर्वासन के विचार को सुनकर रो उठा।
हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भामाशाह कुम्भलमेर की प्रजा को लेकर मालवे मे रामपुर की ओर चला गया था, वहा भामाशाह और उसके भाई ताराचन्द ने मालवे पर चढाई करके २५ लाख रुपये तथा २० हजार प्रशफियों दण्डस्वरूप वसूल की। इस सकट-अवस्था में उस वीर ने देशभक्ति तथा स्वामिभक्ति से प्रेरित होकर, कर्नल जैम्स टाड के कथनानुसार, राणा प्रताप को जो धन भेट किया था वह इतना था कि २५ हजार सैनिको का १२ वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। भामाशाह के इस अपूर्व त्याग के सम्बन्ध मे भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्रजी ने लिखा है :
जा धन के हित नारि तनं पति, पूत तर्ज पितु शीलहि सोई। भाई सो भाई लगे रिपु से पुनि, मित्रता मित्र तजे दुख जोई। ता धन को बनियां है गिन्यो न, वियो बुख देश के भारत होई। स्वारय पार्य तुम्हारी ई है, तुमरे सम और न या जग कोई ॥
देशभक्त भामाशाह का यह कैसा अपूर्व स्वार्थत्याग है । जिस धन के लिए औरगजेब ने अपने पिता को कैद कर लिया, अपने भाई को निर्दयतापूर्वक मरवा डाला, जिस धन के लिए बनवीर ने अपने भतीजे-मेवाड़ के उत्तराधिकारी बालक उदयसिह-को मरवा डालने के अनेक प्रयत्न किये, जिस धन के लिए मारवाड के कई राजाओ ने अपने पिता और भाइयो का सहार किया, जिस धन के लिए लोगो ने मान बेचा, धर्म बेचा, कुल-गौरव बेचा साथ ही देश की स्वतत्रता बेची, वही धन भामाशाह ने देशोद्वार के लिए प्रताप को अर्पण कर दिया। भामाशाह का यह अनोखा त्याग धन-लोलुप मनुष्यो की बलात् पाँखे खोलकर उन्हे देश-भक्ति का पाठ पढ़ाता है।
__ भामाशाह का जन्म कावडया सज्ञक मोसवाल जैन कुल में हुमा था। इनके पिता का नाम भारमल था। महाराणा सागा ने भारमल को वि० स० १६१० ई०स० १५५३ में अलबर से बुलाकर रणथम्भौर का किलेदार नियत किया था। पीछे से जब हाड़ा सूरजमल बूंदवाला वहा का किलेदार नियत हुआ, उस समय भी बहुत-सा काम भारमल के ही हाथ में था। वह महाराणा उदयसिंह के प्रधान पद पर प्रतिष्ठित था। भारमल के स्वर्गवास होने पर राणा प्रताप ने भामाशाह को अपना मत्री नियत किया था। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद जब भामाशाह मालवे की ओर चला गया था तब उसकी अनुपस्थिति मे रामा सहाणी महाराणा के प्रधान का कार्य करने लगा था। भामाशाह के पाने पर रामा ने प्रधान का कार्य-भार लेकर पुनः भामाशाह को सौप दिया। उसी समय किसी कवि का कहा गया प्राचीन पद्य इस प्रकार है -
भामौ परषानो करे, रामौ कोधो रद्द । ३२२ ]