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उपेक्षा मत करो । ज्ञान को ग्रहण करने और प्रन्यो को ज्ञान का दान करने मे प्रमाद मत करो।
___ माता को देवता समझो । पिता को देवता समझो। प्राचार्य को देवता समझो । प्रतिथि की देवंती समझो । राष्ट्र को देवता समझो।
जो अच्छे कर्म है उन्हीं का सेवन करो, अन्यो का नहीं। हमारे जो आचरण तुम्हे अनिय लंगते हो उन्ही का अनुकरण करो, अन्यो का नही।
श्रद्धापूर्वक दान दो। प्रश्रद्धा से दान मत दो । सम्पत्ति के अनुसार दान दो । शालीनता और लज्जापूर्वक दान दो । भय से दान दो । सहानुभूति से दान दो।
और यदि तुम्हे कभी कर्म के सम्बन्ध में सन्देह हो, या आचरण के सम्बन्ध में सन्देह हो, तो जो विचारशील, न्यायपरायण, योग्य, निष्ठावान, सहृदय, धर्मप्रेमी ब्राह्मण हो, विशिष्ट प्रसंग में वे जैसा आचरण करे उस प्रसंग में तुम भी वैसा ही आचरण करो।
यही आदेश है । यही उपदेश है । यही वैद और उपनिषद है । यही सीख है।
इस प्रकार साधना करो। इसी प्रकार साधना करो। औ स्नातको, इसे अपने मन में दढ़तापूर्वक धारणा करो और सदैव सदाचार और सद्व्यवहार का आचरण करो। राणाप्रताप और भामाशाह
स्व० फलचन्द पुष्पेन्दु भारतभूमि में त्याग भौर नि.स्वार्थ भावना से कार्य करने को विशेष महत्व दिया है इसलिए हमारे देश में दानवीर और लोकसेवी पुरुषो का विशेष सम्मान किया जाता है।
महाराणा प्रताप और देशभक्त भामाशाह का युधको के हृदय में विशेष मान है क्योकि दोनो ने मातृभूमि के रक्षा के लिए अगणित कठिनाइयाँ उठायी। उनका आदर्श सदैव भारतीयो को मार्गदर्शन करता रहेगा। उदीयमान युवक पुष्पेन्दु की यह कविता प्रत्यत रोचक और नवयुधको के लिए मार्गदर्शक है । खेद है कि यह कला असमय मे ही कुम्हला गई। उनकी कविता उनकी स्मृति सदैव याद दिलाती रहेगी।
कहता हूँ कहानी कि एक देशभक्त की, राणा प्रतापसिंह व अकवर के वक्त की। जिसने रखी थी लान भारतीय रक्त की, जिसने अशक्त-सी स्वतत्रता सशक्त की।
चीरो में चीर भामाशाह दानवीर था,
राणा प्रतापसिंह का बूढ़ा वजीर था । ताजिंदगी जिसने न मनाई थी दिवाली, दुश्मन से खेलता रहा जो खून की होली। ऐसे प्रतापसिंह की दुखपूर्ण जिन्दगी, झाँकी गई थी पाग में या मौत मे पगी।