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लाला तनसुखरायजी ने भी भारत वेजिटेरियन सोमायटी नामक मम्या खोली थी। और उसीके माध्यम से यह अधिवेशन करवाया और विदेशी शाकाहार से रचि रखने वाले अतिथियो को आमत्रित किया। इसमे कोई सदेह नही लालाजी की इस कार्य में विशेष रुचि थी। उन्होने प्रयल भी किया। परतु पूर्ण सहयोग का प्रभाव और योग्य हाथो मे न सांपने के कारण इस सस्था का कार्यक्षेत्र केवल कागजो मे ही रह गया । और उनके स्वर्गवास के पश्चात समाप्त हो गई । आवश्यकता है जैन समाज के उत्साही कर्मशील सपन्न युवक इस कार्य को अपने हाथो मे ले और पूर्ण रुचि के साथ इसका सचालन करे तो मानव जाति का अकथनीय उपकार हो । इस समय विश्व में एक वडा सघर्प चल रहा है । मासाहार, मछली, अन्डो का उत्पादन इतनी दूतगति से बढ रहा है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। किसी समय पशुओ का वध धर्म के नाम । पर होता था, अव उदर पूर्ति के नाम पर होता है। परन्तु आज विटामिन शक्तिवर्धक तत्वो के नाम पर होता है । जैनो मे जो विशुद्ध शाकाहारी है कतिपय नवयुवको के मस्तिष्क में भी यह दूषित विचारधारा विना बुलाए तेजी से आ रही है। कुछ अडे भी इस प्रकार के होते है जिनमे जीव पैदा होने का सभावना नही होती। तो उम सम्बन्ध मे तक किया जाता है उनके खाने मे क्या दोष है ? इसी प्रकार का प्रश्न मुझसे माननीय प्रधान मत्री जी के एक उच्चपदासीन सेक्रेटरी ने उस समय किया जब मै अमेरीकन राष्ट्रपति श्री प्राइजन होवर को भारत पधाग्ने पर Key of Knowledge भेंट करने के लिए गया था। मैने उत्तर दिया श्रीमान जी! हम आपकी विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकते । कुछ स्त्रिया भी ऐसी होती है जिनके सन्तान नहीं होती। तो क्या हम उन्हे निर्जीव कहे । जव मैने यह उत्तर दिया तो वे मेरी ओर देखने लगे और कहा नि सदेह शाकाहारी भोजन मर्वश्रेष्ठ है। मैं इसकी प्रशसा करता हूँ। मुझे भी शाकाहार के सम्बन्ध मे कुछ उत्तम साहित्य दीजिए । फिर उन्हे कुछ साहित्य भेंट दिया गया। -
कहने का साराश है कि शाकाहार के प्रचार की वडी आवश्यकता है । प्रचार की तीव्रता के कारण निन्दनीक घृणास्पद मासाहार की वृद्धि हो रही है जिसका सामना करना युवको को चुनौती - दे रहा है कि वे उस चुनौती को स्वीकार करे और विरोध मे शक्तिशाली आन्दोलन उठावे ।
विदेशो मे जहाँ मासाहार की बड़ी प्रचुरता है रेगिस्तान मे नग्वलिस्तान की तरह कुछ विशिष्ट शक्तिशाली पुरुषो और महिलामो द्वारा यह आन्दोलन चलाया जा रहा है । वे इस सम्बन्ध मे निर्भीकता से कार्य करते है । और माधुनिक प्रचार के साधनो को अपनाकर शाकाहार का प्रचार तेजी से कर रहे है। आपको यह जानकर अत्यत प्रमन्नता होगी कि विदेशो मे बीस हजार स्त्री-पुरुष शाकाहारी आन्दोलन के सदस्य है जो गाकाहार पर निर्भर है। उन्होने इस सम्बन्ध मे घोषणाए की है कि शाकाहारी निरोग और स्वस्य रहता है। उसमे ऐमे सक्रामक रोगो का समावेश नहीं हो पाता, जिन रोगो से मसित वह पशु होता है जिसका मासाहार काम मे लिया जाता है । अनेक वीमारिया मासाहार के त्याग के साथ उनकी समाप्त हो गई ।
मासाहार मनुप्य की खुराक नहीं है । गाकाहार, अन्न, फल, दूध प्रादि ही मनुष्य की सच्ची खुराक है । इस सम्बन्ध मे उत्तम साहित्य भी प्रकाशित किया गया है जिसकी सूची, सस्थामो के नाम उनके सचालक और इस सम्बन्ध मे आवश्यक वातो का परिचय मग देने का
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